पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/५७

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56/ योगिराज श्रीकृष्ण
 

में रंग-बिरंगे पुष्प महकने लगे। जंगली वृक्षों में पुष्प लग गये और उन पर पक्षिगण किलोल करने लगे। देवता पुष्प-वर्षा करने लगे। अप्सराएँ नाचने लगीं। सारांश यह कि सृष्टि मात्र में बधाइयाँ बजने लगीं। कहाँ तो यमुना का जल अथाह हो रहा था और कहाँ कृष्ण महाराज का पैर चूमते ही वह इतनी उतर गई कि वसुदेव उसमे से पैदल पार हो गए।[१] दूसरे तट पर नन्द बाट देख रहे थे। उन्होंने कृष्ण को ले लिया और अपनी लड़की को वसुदेव के हवाले किया।

कृष्णचंद्र रातोंरात गोकुल में पहुँचा दिये गए। उनकी जगह यशोदा की लड़की देवकी के साथ लाकर लिटा दी गई। कंस को दूसरे दिन जब ज्ञात हुआ कि रात को देवकी के बालक जन्मा है तो वह तत्काल उठ खड़ा हुआ और सौर में चला गया। देवकी उसे देख रोने और विलाप करने लगी, पर उस दुष्ट ने एक न मानी और उस लड़की को (जो उसके साथ शय्या पर लेटी हुई थी) उठाकर पृथ्वी पर दे मारा!

दुष्ट कंस! पाप ने तेरी आँखों पर पट्टी बाँध दी। सारी आर्य-मर्यादा को तूने मिट्टी में मिला दिया। इस अज्ञानी बालिका के वध से तूने अपने को महापाप का भागी बना लिया और यह न विचारा कि मृत्यु से कोई भी बच नहीं सकता। जिस राज्य के लिए तू ऐसे पाप कर रहा है वह क्षणिक है, पर ऐसे घोर पाप से तेरी आत्मा घोर अधोगति को प्राप्त होगी।

पाप से बढ़कर अंधा करने वाली दूसरी शक्ति जगत् में नहीं है। एक पाप को छिपाने के लिए मनुष्य को अनेक पाप करने पड़ते हैं। पाप बड़ा बली है। जो लोग पाप पर विजयी नहीं हो सकते, उनको सदा खटका बना रहता है। रस्सियाँ साँप बनकर उनको डसने दौड़ती हैं। सारा संसार उनको शत्रु दीख पड़ता है। जितना कोई सीधा तथा निष्कपट होता है उतना ही वह (पापी) उससे भय खाता है। अज्ञानी बालकों को भी यह अपना शत्रु समझकर उनके वध पर उतारू हो जाता है, यहाँ तक कि उसके पाप की गठरी इतनी भारी हो जाती है कि वह स्वयं उसी के बोझ से दबकर मर मिटता है।

पुराण का लेखक आगे लिखता है कि जब लड़की को उठाकर भूमि पर फेंक दिया तो वह तत्काल देवी का रूप धारण कर वायु में अन्तर्धान हो गई और कंस खड़ा देखता ही रह गया[२], पर उसे लगा कि या तो मेरे साथ धोखा किया गया या मैंने इस बालिका को वृथा मारा अगमवाणी तो बालक के विषय में थी। चाहे कुछ हो पर उसने यादववंश के सारे बालकों के वध की आज्ञा दे दी[३]। ढूँढ़-ढूँढ़कर राजकुमार मारे गये। बहुतेरे यादव वृन्द देश छोड़कर चल दिए और बहुत दिनों तक यह मार-पीट जारी रही।


  1. सहृदय पाठक! आप तो समझ ही गए होंगे कि इसके क्या अर्थ है। यह पुराण की रसीली भाषा है। इसे मैंने इसलिए उद्धृत कर दिया है ताकि आप भी इसके आनन्द में मग्न हों। यह कृष्ण का प्रथम अलौकिक कार्य है।
  2. हजरत ईसा के जन्म के विषय में भी ऐसी ही कथा प्रसिद्ध है कि हिरोदेशी (जो उस समय वहाँ का अनुशासक था) ने इसी तरह तथा इसी भय से अनेक बालक मरवा डाले थे।
  3. शाहनामा में 'फरेदु' के जन्म के विषय में भी ऐसी ही कथा लिखी है।