पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/७५

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ग्यारहवाँ अध्याय
श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध

द्वारिकापुरी में जा बसने के पश्चात् कृष्ण का जीवन दो भागों में विभाजित होता है। एक वह जो महाभारत के युद्ध में दीख पड़ता है और दूसरा वह जो दूसरी लड़ाइयों के वृत्तान्तों से विदित होता है। द्वारिका में वास करने के बाद श्रीकृष्ण की राजनीति का बड़ा अंश महाभारत में व्यतीत हुआ है। महाभारत में कृष्ण की जो बातें लिखी हैं उनसे उनके जीवन का कुछ-न-कुछ पत्ता तो अवश्य चलता है इसलिए हम पहले उन लड़ाइयों का वृत्तान्त वर्णन करेंगे जो पौराणिक साहित्य में उनके नाम से वर्णन की जाती है। ये वृत्तान्त इतनी अत्युक्तियों से ऐसे भरे हुए है कि उनमें से यथार्थ बातों का सार निकालना संभव नहीं।

(1) विष्णुपुराण में (29वाँ अध्याय) उस आक्रमण का वर्णन है जो कृष्ण ने कामरूप (आसाम) की राजधानी प्राग्ज्योतिष पर किया था। यहाँ के राजा का नाम 'नरक' लिखा है। इस युद्ध का कारण यह बताया जाता है कि प्रग्ज्योतिष का राजा बड़ा अन्यायी था! डराकर लोगों की स्त्रियों और कन्याओं को अपने घर मे डाल लेता था और जब उस प्रान्त के लोगो ने इस बात की कृष्ण से आकर शिकायत की तो उन्होंने 'नरक' पर चढ़ाई की और उसको मारकर उन सब स्त्रियों को छुटकारा दिया जो उसके महल में कैद थीं और जिनकी गिनती 16 हजार कही गई है।

(2) दूसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में है कर्नाटक के राजा 'बाण' से हुई। इसका कारण यह जान पड़ता है कि कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और बाण की पुत्री उषा में परस्पर प्रेम हो गया था। यह प्रेम यहाँ तक बढ़ा कि अनिरुद्ध उपा के चाञ्चल्य से बाण के महलों मे जा पहुँचा! वहाँ अपनी प्रिया के संग पकड़ा गया और बन्दी बना लिया गया। जब यह समाचार द्वारिका पहुँचा, तो श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न उसे छुड़ाने गए। एक भयंकर लड़ाई के बाद बाण पराजित हुआ और कृष्ण अनिरुद्ध को लेकर लौट आये।

(3) तीसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में आया है, बनारस के राजा पौण्ड्रक से हुई थी। इस राजा ने वासुदेव की उपाधि ग्रहण कर ली थी, पर कृष्ण की उपाधि भी यही थी। ऐसा कहते है कि इस (पौण्ड्क) ने ईर्ष्यावश श्रीकृष्ण को एक उद्दण्ड संदेश कहला भेजा और इसी से दोनों में युद्ध हुआ जिसमें पौण्ड्रक मारा गया। इस लड़ाई में पहले चढ़ाई किस ओर से हुई इस विषय में मतभेद है। विष्णुपुराण के अनुसार जब कृष्ण को झूठा और छली कहा गया तो पहले उन्होंने ही चढ़ाई की, पर दूसरे लोग यह कहते हैं कि जब कृष्णचन्द्र कैलाशयात्रा के गए हुए थे तो पौण्ड्रक पहले द्वारिका पर चढ़ आया और इसी से युद्ध आरम्भ हुआ