आर्यावर्त में कौरवों और पांचालों की लड़ाई इतनी प्रसिद्ध है कि एक छोटा बच्चा भी उसे भली भॉति जानता है। वस्तुतः कौरव और पांचाल दो जातियों के नाम थे, जो भारतवर्ष के उत्तर प्रान्त में शासन करती थीं। कुरु जाति की भोग्य भूमि का नाम कुरुवन था और पांचालो के देश का नाम पंचाल ही था। यद्यपि दोनो जातियाँ एक ही वंश से थी, पर दोनों में ऐसा विरोध था कि सदा आपस में लड़ती रहती थीं। पाण्डुपुत्र (युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव) और दुर्योधन इत्यादि ये सब कुरुवंश के राजकुमार थे और आपस में चचेरे भाई थे। पांचाल के राजा का नाम द्रुपद था जो राजकुमारी द्रौपदी का पिता था। दुर्योधन का पिता धृतराष्ट्र अन्धा होने से गद्दी पर नहीं बैठा। पाण्डु राज्य करता था। पाण्डु के मरने पर धृतराष्ट्र का बड़ा पुत्र दुर्योधन गद्दी का दावेदार हुआ और इसकी सिद्धि के लिए वह पाण्डुपुत्रों की जान के पीछे पड़ा। यह विग्रह इतना बढ़ा कि धृतराष्ट्र ने पाण्डवों से कहा, वे कुछ काल के लिए विराट नगर में जाकर रहें। पाण्डवों ने जब इस बात को स्वीकार कर लिया तो दुर्योधन ने अपने एक मित्र विरोचन को इसलिए आगे भेज दिया, ताकि वह युधिष्ठिर तथा अन्य पाण्डवों के रहने के लिए लाख का एक घर निर्माण करा दे जिसमे जब पाण्डव जाकर रहें तो किसी भी दिन या रात को उसमें आग लगा दी जाय और इस प्रकार सबके सब अंदर जल मरें। पर दुर्योधन की इस करतूत की खबर विदुर को मिल गई। उन्होंने अपने भतीजे युधिष्ठिर इत्यादि को इससे सूचित कर दिया और इसलिए सावधान होकर पांचों पाण्डव आग लगने के पहले ही वहाँ से भाग निकले और ब्राह्मण का रूप धर छिपे-छिपे वन में विचरण करने लगे। इन्हीं दिनो मे पाचाल की राजपुत्री द्रौपदी का स्वयंवर रचा गया था। इस उत्सव में आर्यावर्त के सब क्षत्रिय राजा-महाराजा उपस्थित थे। श्रीकृष्ण भी अपने भाई बलराम के साथ आए हुए थे। एक ओर ब्राह्मण के देष मे पाण्डवगण भी बैठे हुए थे।
इस स्वयंवर में विजय का नियम यह रखा गया था कि तेल की एक कढ़ाई में एक चक्र पर मछली का चित्र बना था। वह मछली वूमती थी। इसकी परछाई तेल से देखकर जो अपने बाण से मछली के नेत्र में निशाना लगाएगा वही द्रौपदी का पति होगा। ऐसा जान पड़ता है कि उस समय धनुष विद्या में कर्ण और अर्जुन बड़े निपुण थे। इनकी समता कोई नहीं कर सकता था। अब उपस्थित राजाओं में से कोई भी इस नियम का पालन नहीं कर सका, तो कर्ण उठा, जिस पर द्रौपदी ने कहा कि यह सारथी का पुत्र है, इससे मैं विवाह नहीं कर सकती यह सुनकर कर्ण मुँह लेकर बैठ गया अन्त में ब्राह्मणों की पक्ति में से