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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/९९

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दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन /99
 


को सहायता देना नहीं चाहता। जब दुर्योधन विदा हो चुका तो कृष्ण ने अर्जुन से पूछा, "हे राजपुत्र! तूने मेरी व्यक्तिगत सहायता को मेरी सारी सेना पर क्यो श्रेष्ट समझा?" अर्जुन ने कहा, "आपकी सारी सेना से युद्ध करने के लिए तो मैं अकेला काफी हूँ। संसार में एक बुद्धिमान् पुरुष लाख मूखों से बढ़कर शक्ति रखता है। आपने इस युद्ध में शस्त्र को हाथ में लेने की प्रतिज्ञा की है, अतएव मेरी इच्छा है कि आप मेरे रथ के सारथी बने। यदि मेरे पास आप जैसे सारथी हों तो फिर किसमें सामर्थ्य है जो मेरा सामना कर सके और मुझसे बचकर चला जाये।"

कृष्ण जी ने ऐसा करना स्वीकार कर लिया।