सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
योगप्रदीप
 

अव्यक्त परमेश्वरको ढूँढ़ना उन लोगोंका रास्ता है जो जीवनसे हटना चाहते हैं, और ये लोग प्रायः अपने ही साधनके द्वारा साध्यकी ओर जानेका यत्न करते हैं, अपने आपको किसी महती शक्तिकी ओर खोल देने या आत्म- समर्पण करनेके रास्तेसे नहीं; कारण, अव्यक्त परमात्मतत्व कोई ऐसी चीज नहीं है जो मार्ग दिखावे या मदद करे, बल्कि एक ऐसी चीज है जिसे स्वयं ही पा लेना होता है, यहाँ हर किसीका यह काम है कि वह अपनी प्रकृतिकी विशिष्ट रीति और पात्रताके अनुसार उसे पा ले। इसके विपरीत मातृस्वरूपिणी भागवत शक्तिका सञ्चार ग्रहण करनेके लिये अपने आपको खोल देने और माताके चरणों में अपने आपको समर्पण कर देनेसे कोई भी अव्यक्त परमतत्त्वको अनुभव कर सकता है और साथ ही उसके प्रत्येक अन्य स्वरूपको भी।

समर्पण अवश्य ही क्रमसे होता है। आरम्भमात्रसे ही कोई पूर्ण समर्पण करनेमें समर्थ नहीं हो सकता; इसीलिये ऐसा होता है कि जब कोई साधक आत्मपरीक्षण करने लगता है तो उसे अपने अन्दर समर्पणका अभाव ही देखनेमें आता है। इसलिये कोई कारण नहीं है कि समर्पणका तत्त्व ही छोड़ दिया जाय और अवस्था-प्रति-

[ ५० ]