पृष्ठ:योग प्रदीप.djvu/७९

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योगप्रदीप
 

ऊर्ध्वकी ओर उद्घाटन है, यह समग्र भगवान्से हमारा सम्बन्ध जोड़ता है और इससे हमारे अन्दर भागवत चैतन्य उत्पन्न हो सकता है और आत्माका नया जन्म या नये जन्म हो सकते हैं।

जब शान्ति स्थापित होती है तब यह परा अर्थात् भागवत शक्ति ऊपरसे हमारे अन्दर उतर सकती और कार्य कर सकती है। इसका अवतारण प्रायः पहले मस्तकमें होता है और उससे मनबुद्धिके अन्तश्चक्र खुल जाते हैं, तब यह शक्ति हृच्चक्रमें उतरती है और हृत्पुरुष तथा चित्त-पुरुषको सर्वथा मुक्त कर देती है, तब नाभिचक्र और अन्य प्राणचक्रोंमें उतरकर अन्तःप्राणको मुक्त करती है, इसके बाद मूलाधार और मूलाधारके नीचे उतरकर आन्तर शरीरपुरुषको मुक्त कर देती है। यह शक्ति एक साथ सिद्धि और मुक्ति दोनों साधती है; प्रकृतिके सब अङ्गोंको एक-एक करके अधिकृत करती और उन्हें दुरुस्त करती है, जो बात निकाल देने योग्य है उसे निकाल देती है, जो सुधार और उद्धार करने योग्य है उसका सुधार और उद्धार करती है, जो निर्माण करने योग्य है उसे निर्माण करती है। इसका काम है प्रकृतिमें अखण्डता और सामञ्जस्य साधन करना और एक नवीन छन्दोबद्ध गति स्थापित करना। यह उत्तरोत्तर अधिकाधिक

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