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रंगभूमि

जैनब—"कोई अपना होता, तो इस वक्त मुडीकाटे को कच्चा ही चबा जाता।"

ताहिरअली घबराकर मैदान की ओर दौड़े। माहिर के कपड़े खून से तर देखे, तो जामे से बाहर हो गये। घीसू के दोनों कान पकड़कर जोर से हिलाये और तमाचे-पर-तमाचे लगाने शुरू किये। मिठुआ ने देखा, अब पिटने की बारी आई, मैदान हमारे हाथ से गया, गालियाँ देता हुआ भागा! इधर घीसू ने भी गालियाँ देनी शुरू की। शहर के लौंडे गाली की कला में सिद्धहस्त होते हैं। घीसू नई-नई अछूती गालियाँ दे रहा था और ताहिरअली गालियों का जवाब तमाचों से दे रहे थे। मिठुआ ने जाकर इस संग्राम की सूचना बजरंगी को दी-'सब लोग मिलकर घीसू को मार रहे हैं, उसके मुँह से लहू निकल रहा है। वह भैसें चरा रहा था, बस तीनों लड़के आकर भैसों को भगाने लगे। घीसू ने मना किया, तो सबों ने मिलकर मारा, और बड़े मियाँ भी निकल-कर मार रहे हैं।" बजरंगी यह खबर सुनते ही आग हो गया। उसने ताहिरअली की माताओं को ५०) दिये थे और उस जमीन को अपनी समझे बैठा था। लाठी उठाई और दौड़ा| देखा, तो ताहिरअली घीसू के हाथ-पाँव बँधवा रहे हैं। पागल हो गया, बोला-"बस, मुंशीजी, भला चाहते हो, तो हट जाओ; नहीं तो सारो सेखी भुला दूँगा, यहाँ जेहल का डर नहीं है, साल-दो साल वहीं काट आऊँगा, लेकिन तुम्हें किसी काम का न रखूँगा। जमीन तुम्हारे बाप की नहीं है। इसीलिए तुम्हें ५०) दिये हैं। क्या वे हराम के रुपये थे? बस, हट ही जाओ, नहीं तो कच्चा चबा जाऊँगा, मेरा नाम बजरंगी है!”

ताहिरअली ने अभी कुछ जवाब न दिया था कि घीसू ने बाप को देखते ही जोर से छलाँग मारी, और एक पत्थर उठाकर ताहिरअली की तरफ फेंका। वह सिर नीचा न कर लें, तो माथा फट जाय। जब तक घीसू दूसरा पत्थर उठाये, उन्होंने लपककर उसका हाथ पकड़ा और इतनी जोर से ऐंठा कि वह “आह मरा! आह मरा!” कहता हुआ जमीन पर गिर पड़ा। अब बजरंगी आपे से बाहर हो गया। झपटकर ऐसी लाठी मारी कि ताहिरअली तिरमिराकर गिर पड़े। कई चमार, जो अब तक इसे लड़कों का झगड़ा समझकर चुपचाप बैठे थे, ताहिरअली को गिरते देखकर दौड़े और बजरंगी को पकड़ लिया। समर-क्षेत्र में सन्नाटा छा गया। हाँ, जैनब और रकिया द्वार पर खड़ी शब्द-बाण चलाती जाती थीं-"मूड़ी काटे ने गजब कर दिया, इरा पर खुदा का कहर गिरे, दूसरा दिन देखना नसीब न हो, इसकी मैयत उठे, कोई दौड़कर साहब के पास क्यों जाकर इत्तिला नहीं करता। अरे-अरे चमारो, बैठे मुँह क्या ताकते हो, जाकर साहब को खबर क्यों नहीं देते; कहना-अभी चलिए। साथ लाना, कहना-पुलिस लेते चलिए, यहाँ जान देने नहीं आये हैं।"

बजरंगी ने ताहिरअली को गिरते देखा, तो सँभल गया, दूसरा हाथ न चलाया। घीसू का हाथ पकड़ा और घर चला गया। यहाँ घर में कुहराम मचा। दो चमार जॉन सेवक के बँगले की तरफ गये। ताहिरअली को लोगों ने उठाया और चारपाई पर लाद-कर कमरे में लाये। कंधे पर लाठी पड़ी थी, शायद हड्डी टूट गई थी। अभी तक बेहोश