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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/११७

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रंगभूमि


जाने देती थीं; यो काम न चलता तो विशेष प्रयत्न करके निमंत्रण-पत्र मँगवाती थीं। अगर स्वयं उनके मकान पर दावतें और पार्टियाँ बहुत कम होती थीं, तो इसका कारण ईश्वर सेवक की कृपणता थी।

यह समाचार सुनकर मिसेज सेवक बोलीं—“देख ली हिंदुस्थानियों की सजनता? फूले न समाते थे। अब तो मालूम हुआ कि ये योग कितने कुटिल और विश्वासघातक हैं। एक अंधे भिखारी के सामने तुम्हारी यह इज्जत है। पक्षपात तो इन लोगों की घुट्टी में पड़ा हुआ है, और यह उन बड़े-बड़े आदमियों का हाल है, जो अपनी जाति के नेता समझे जाते हैं, जिनकी उदारता पर लोगों को गर्व है। मैंने मिस्टर क्लार्क से एक बार यह चर्चा की थी। उन्होंने तहसीलदारों को हुक्म दे दिया कि अपने-अपने इलाके में तम्बाकू की पैदावार बढ़ाओ। यह सोफी के आग में कूदने का पुरस्कार है! जरा-सा म्युनिसिपैलिटी का अख्तियार क्या मिल गया, सबों के दिमाग फिर गये। मिस्टर क्लार्क कहते थे कि अगर राजा साहब जमीन का मुआमला न तय करेंगे, तो मैं जाब्ते से उसे आपको दिला दूँगा।"

मिटर जोजफ क्लार्क जिला के हाकिम थे। अभी थोड़े ही दिनों से यहाँ आये थे। मिसेज सेवक ने उनसे रन्त-जन्त पैदा कर लिया था। वास्तव में उन्होंने क्लार्क को सोफी के लिए चुना था। दो-एक बार उन्हें अपने घर बुला भी चुकी थीं। गृह-निर्वासन से पहले दो-तीन बार सोफी से उनकी मुलाकात भी हो चुकी थी; किन्तु वह उनकी ओर विशेष आकृष्ट न हुई थी। तो भी मिलेज सेवक इस विषय में अभी निराश न हुई थीं। क्लार्क से कहती थीं-"सोफी मेहमानी करने गई है।" इसी प्रकार अवसर पाकर उनकी प्रेमाग्नि को भड़काती रहती थीं।

जॉन सेवक ने लजित होकर कहा—“मैं क्या जानता था, यह महाशय भी दगा देगे, यहाँ उनकी बड़ी ख्याति है, अपने बचन के पक्के समझे जाते हैं। खैर, कोई मुजायका नहीं, अब कोई दूसरा उपाय सोचना पड़ेगा।”

मिसेज सेवक—"मैं मिस्टर क्लार्क से कहूँगी। पादरी साहब से भी सिफारिश कराऊँगी।"

जॉन सेवक—"मिस्टर क्लार्क को म्युनिसिलिटी के मुआमलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं।”

जॉन सेवक इसी चिन्ता में पड़े हुए थे कि इस हंगामे की खबर मिली। सन्नाटे में आ गये। पुलिस को रिपोर्ट की। दूसरे दिन गोदाम जाने का विचार कर ही रहे थे कि ताहिरअली लाठी टेकते हुए आ पहुँचे। आते-आते एक कुरसी पर बैठ गये। इक्के के हचकोलों ने अधमुआ-सा कर दिया था।

मिसेज सेवक ने अँगरेजी में कहा—"कैसी सूरत बना ली है, मानों विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा है!"