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रंगभूमि


पर उसने दूकान न खोली। विवश होकर उसने भुने हुए मटर लाकर भैरो के सामने रख दिये। भैरो ने प्याज न देखा, तो तेवर बदले। बोला—"क्या मुझे बैल समझती है। कि भुने हुए मटर लाकर रख दिये, प्याज क्यों नहीं लाई?"

सुभागी ने कहा—"प्याज घर में नहीं है, तो क्या मैं प्याज हो जाऊँ?"

जगधर—"प्याज के बिना मटर क्या अच्छे लगेंगे?"

बुढ़िया—"प्याज तो अभी कल ही धेले का आया था। घर में कोई चीज तो बचती ही नहीं। न जाने इस चुडैल का पेट है या भाड़।"

सुभागी—"मुझसे कसम ले लो, जो प्याज हाथ से भी छुआ हो। ऐसी जीभ होती, तो इस घर में एक दिन भी निबाह न होता।"

भैरो—“प्याज नहीं था, तो लाई क्यों नहीं?"

जगधर—"जो चीज घर में न रहे उसकी फिकर रखनी चाहिए।"

सुभागी—"मैं क्या जानती थी कि आज आधी रात को प्याज की धुन सवार होगी।

भैरो ताड़ी के नशे में था। नशे में भी क्रोध का-सा गुण है, निर्बलों ही पर उतरता है। डंडा पास ही धरा था, उठाकर एक डंडा सुभागी के मारा। उसके हाथ की मुत्र चूड़ियाँ टूट गई। घर से भागी। भैरो पीछे दौड़ा। सुभागी एक दूकान की आड में छिप गई। भैरो ने बहुत ढूँढा, जब उसे न पाया, तो घर जाकर किवाड़ बन्द कर लिये और फिर रात-भर खबर न ली। सुभागी ने सोचा, इस वक्त जाऊँगी, तो प्राण न बचंगे। पर रात-भर रहूँगी कहाँ? बजरङ्गी के घर गई। उसने कहा-"ना बाबा, मैं यद रंग नहीं पालता। खोटा आदमी है, कौन उससे रार मोल ले!” ठाकुरदीन के द्वार बन्द थे। सूरदास बैठा खाना पका रहा था। उसकी ओपड़ी में घुस गई और बोली-"सूरे, आज रात-भर मुझे पड़ रहने दो, मारे डालता है, अभी जाऊँगी, तो एक हड्डा भी न बचेगी!"

सूरदास ने कहा—"आओ, लेट रहो, भोरे चली जाना, अभी नसे में होगा।"

दूसरे दिन जब भैरो को यह बात मालूम हुई, तो सूरदास से गाली-गलौज की और मारने की धमकी दी। सुभागी उसी दिन से सूरदास पर स्नेह करने लगी। जब अत्र-काश पाती, तो उसके पास आ बैठती, कभी-कभी उसके घर में झाड़ू, लगा जाती, कभी अरवालों की आँख बचाकर उसे कुछ दे जाती, मिठुआ को अपने घर बुला लें जाती और उसे गुड़ चबेना खाने को देती।

भैरो ने कई बार उसे सूरदास के घर से निकलते देखा। जगधर ने दोनों को बातें करते हुए पाया। भैरो के मन में सन्देह हो गया कि जरूर इन दोनों में कुछ साठ-गाँठ है। तभी से वह सूरदास से खार खाता था। उससे छेड़कर लड़ता। नायकराम के भय से उसकी मरम्मत न कर सकता था। सुभागी पर उसका अत्याचार दिनोदिन बढ़ता जाता था और जगधर, शांत स्वभाव होने पर भी, भैरो का पक्ष लिया करता था।

जिस दिन बजरंगी और ताहिरअली में झगड़ा हुआ था, उसी दिन भैरो और सूर-