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रंगभूमि


सोफिया मारे शर्म के कुछ बोल न सकी। म ने कहा-"आप रानीजी को जरूर साथ लाइएगा। मैं कार्ड भेजूँगी।"

कुँवर साहब-"नहीं मिसेज सेवक, मुझे क्षमा कीजिएगा। मुझे खेद है कि मैं उस उत्सव में सम्मिलित न हो सकूँगा। मैंने व्रत कर लिया है कि राज्याधिकारियों से कोई संपर्क न रखूँगा। हाकिमों की कृपा-दृष्टि, ज्ञात या अज्ञात रूप से, हम लोगों को आत्मसेवी और निरंकुश बना देती है। मैं अपने को इस परीक्षा में नहीं डालना चाहता; क्योंकि मुझे अपने ऊपर विश्वास नहीं है। मैं अपनी जाति में राजा और प्रजा तथा छोटे और बड़े का विभेद नहीं करना चाहता। सब प्रजा हैं, राजा है वह भी प्रजा है, रंक है वह भी प्रजा है। झूठे अधिकार के गर्व से अपने सिर को नहीं फिराना चाहता।"

मिसेज सेवक-"खुदा ने आपको राजा बनाया है। राजों ही के साथ तो राजा का मेल हो सकता है। अँगरेज लोग बाबुओं को मुँह नहीं लगाते; क्योंकि इससे यहाँ के राजों का अपमान होता है।"

डॉ० गंगुली-“मिसेज सेवक, यह बहुत दिनों तक राजा रह चुका है, अब इसका जी भर गया है। मैं इसका बचपन का साथी हूँ। हम दोनों साथ-साथ पढ़ते थे। देखने में यह मुझसे छोटा मालूम होता है, पर कई साल बड़ा है।"

मिसेज सेवक-(हँसकर) "डॉक्टर के लिए यह तो कोई गर्व की बात नहीं है।"

डॉ० गंगुली-“हम दूसरों का दवा करना जानता है, अपना दवा करना नहीं जानता। कुँवर साहब उसी बखत से pessimist है। उसी pessimism ने इसकी शिक्षा में बाधा डाली। अब भी इसका वही हाल है। हाँ, अब थोड़ा फेरफार हो गया है। पहले कर्म से भी निराशावादी था और वचन से भी। अब इसके वचन और कर्म में सादृश्य नहीं है। वचन से तो अब भी pessimist है; पर काम वह करता है, जिसे कोई पक्का optimist ही कर सकता है।"

कुँबर साहब-"गंगुली, तुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो। मुझमें आशावादिता के गुण ही नहीं हैं। आशावादी परमात्मा का भक्त होता है, पका ज्ञानी, पूर्ण ऋषि। उसे चारों ओर परमात्मा ही की ज्योति दिखाई देती है। इसी से उसे भविष्य पर अविश्वास नहीं होता। मैं आदि से भोग-विलास का दास रहा हूँ; वह दिव्य ज्ञान न प्राप्त कर सका, जो आशावादिता की कुंजी है। मेरे लिए Pessimism के सिवा और कोई मार्ग नहीं है। मिसेज सेवक, डॉक्टर महोदय के जीवन का सार है-'आत्मोत्सर्ग।' इन पर जितनी विपत्तियाँ पड़ीं, वे किसी ऋषि को भी नास्तिक बना देती। जिस प्राणी के सात बेटे जवान हो-होकर दगा दे जायँ, पर वह अपने कर्तव्य-मार्ग से जरा भी विचलित न हो, ऐसा उदाहरण विरला ही कहीं मिलेगा। इनकी हिम्मत तो टूटना जानती ही नहीं, आपदाओं की चोटें इन्हें और भी ठोस बना देती हैं। मैं साहस-हीन, पौरुष-हीन प्राणी हूँ। मुझे यकीन नहीं आता कि कोई शासक जाति शासितों के साथ न्याय और साम्य का व्यवहार कर सकती है। मानव-चरित्र को मैं किसी देश में, किसी