किया। अगर आप न्याय-विचार से सूरदास की जमीन का अपहरण करते, तो मुझे आपसे कोई शिकायत न होती, लेकिन केवल अधिकारियों के भय से या बदनामी से बचने के लिए न्याय-पथ से मुँह फेरना अत्यन्त अपमान-जनक है। आपको नगर-वासियों और विशेषतः दीनजनों के स्वत्व की रक्षा करनी चाहिए। अगर हुक्काम किसी पर अत्याचार करें, तो आपको उचित है कि दुखियों की हिमायत करें। निजी हानि-लाम की चिंता न करके हुक्काम का विरोध करें, सारे नगर में-सारे देश में तहलका मचा दें, चाहे इसके लिए पद-त्याग ही नहीं, किसी बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का सामना करना पड़े। मैं राजनीति के सिद्धांतों से परिचित नहीं हूँ। पर आपका जो मानवी धर्म है, वह आपसे कह रही हूँ। मैं आपको सचेत किये देती हूँ कि आपने अगर हुक्काम के दबाव से सूरदास की जमीन ली, तो मैं चुपचाप बैठी न रह सकेंगी। स्त्रो हूँ, तो क्या; पर दिखा दूँगी कि सबल-से-सबल प्राणी भी किसी दीन को आसानी से पैरों-तले नहीं कुचल सकता।"
यह कहते-कहते इंदु रुक गई। उसे ध्यान आ गया कि मैं आवेश में आकर औचित्य की सीमा से बाहर होती जाती हूँ। राजा साहब इतने लजित हुए कि बोलने को शब्द न मिलते थे। अंत में शरमाते हुए बोले- "तुम्हें मालूम नहीं की राष्ट्र के सेवकों को कैसी-कैसी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं। अगर वे अपने कर्तव्य का निर्भय होकर पालन करने लगें, तो जितनी सेवा वे अब कर सकते हैं, उतनी भी न कर सकें। मि० क्लार्क और मि० सेवक में विशेष घनिष्ठता हो जाने के कारण परिस्थिति बिलकुल बदल गई है। मिस सेवक जब से तुम्हारे घर से गई हैं, मि० क्लार्क नित्य ही उन्हीं के पास बैठे रहते हैं, इजलास पर नहीं जाते, कोई सरकारी काम नहीं करते, किसी से मिलते तक नहीं, मिस सेवक ने उन पर मोहनी-मंत्र-सा डाल दिया है। दोनों साथ-साथ सैर करने जाते हैं, साथ-साथ थिएटर देखने जाते हैं। मेरा अनुमान है कि मि सेवक ने वचन दे दिया है।"
इंदु-"इतनी जल्दो! अभी उसे हमारे यहाँ से गये एक सप्ताह से ज्यादा न हुआ होगा।"
राजा साहब-"मिसेज सेवक ने पहले ही से सब कुछ पक्का कर रखा था। मिस सेवक के वहाँ जाते ही प्रेम-कीड़ा शुरू हो गई।"
इंदु ने अब तक सोफिया को एक साधारण ईसाई की लड़की समझ रखा था। यद्यपि वह उससे बहन का-सा बर्ताव करती थी, उसकी योग्यता का आदर करती थी, उससे प्रेम करती थी; किंतु दिल में उसे अपने से नीचा समझती थी। पर मि० क्लार्क से उसके विवाह की बात ने उसके हृद्गत भावों को आंदोलित कर दिया। सोचने लगो- मि० क्लार्क से विवाह हो जाने के बाद जब सोफिया मिसेज़ क्लार्क बनकर मुझसे मिलेगी, तो अपने मन में मुझे तुच्छ समझेगी; उसके व्यवहार में, बातों में, शिष्टाचार में बनावटी नम्रता की झलक होगी; वह मेरे सामने जितना ही झुकेगी, उतना ही मेरा सिर नीचा करेगी। यह अपमान मेरे सहे न सहा जायगा। मैं उससे नीची बनकर नहीं रह