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रंगभूमि


सहृदय महिला के मुझसे यों आँखें फेर लेने का और क्या कारण था? मैं उस देव-पुरुष से क्यों छल करती, जिसकी हृदय में आज भी उपासना करती हूँ, और नित्य करती रहूँगी? अगर यह कारण न होता, तो मुझे अपनी आत्मा को यह निर्दयता-पूर्ण दंड देना ही क्यों पड़ता? मैं इस विषय पर जितना ही विचार करती हूँ, उतना ही धर्म के प्रति अश्रद्धा बढ़ती है। आह! मेरी निष्ठुरता से विनय को कितना दुःख हुआ होगा, इसकी कल्पना ही से मेरे प्राण सूखे जाते हैं। वह देखो, मि० क्लार्क बुला रहे हैं। शायद सरमन (उपदेश) शुरू होनेवाला है। चलना पड़ेगा, नहीं तो मामा जाता न छोड़ेंगी।"

प्रभु सेवक तो कदम बढ़ाते हुए जा पहुँचे; सोफिया दो-ही-चार कदम चली थी कि एकाएक उसे सड़क पर किसी के गाने की आहट मिली। उसने सिर उठाकर चहारदीवारी के ऊपर से देखा, एक अंधा आदमी, हाथ में खजरी लिये, यह गीत गाता हुआ चला जाता है-

भई, क्यों रन से मुँह मोडै़?
वीरों का काम है लड़ना, कुछ नाम जगत में करना,
क्यों निज मरजादा छोडै़?
भई, क्यों रन से मुँह मोडै़?
क्यों जीत की तुझको इच्छा, क्यों हार की तुझको चिंता,
क्यों दुख से नाता जोड़े?
भई, क्यों रन से मुँह मोडै़?
तू रंगभूमि में आया, दिखलाने अपनी माया,
क्यों धरम-नीति को तोडै़?
भई, क्यों रन से मुँह मोडै़?

सोफिया ने अंधे को पहचान लिया; सूरदास था। वह इस गीत को कुछ इस तरह मस्त होकर गाता था कि सुननेवालों के दिल पर चोट-सी लगती थी। लोग राह चलते-चलते सुनने को खड़े हो जाते थे। सोफिया तल्लीन होकर वह गीत सुनती रही। उसे इस पद में जीवन का संपूर्ण रहस्य कूट-कूटकर भरा हुआ मालूम होता था—

“तू रंगभूमि में आया, दिखलाने अपनी माया,
क्यों धरमनीति को तोहै? भई, क्यों रन से मुँह मोडै़?"

राग इतना सुरोला, इतना मधुर, इतना उत्साह-पूर्ण था कि एक समा-सा छा गया। राग पर बँजरी की ताल और भी आफत करती थी। जो सुनता था, सिर धुनता था।

सोफिया भूल गई कि मैं गिरजे में जा रही हूँ, सरमन की जरा भी याद न रही। वह बड़ी देर तक फाटक पर खड़ी यह 'सरमन' सुनती रही। यहाँ तक कि सरमन समाप्त हो गया, भक्तजन बाहर निकलकर चले। मि० क्लार्क ने आकर धीरे से सोफिया के कन्धे पर हाथ रखा, तो वह चौंक पड़ी।