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रंगभूमि

क्लार्क—"लार्ड विशप का सरमन समाप्त हो गया और तुम अभी तक यहीं खड़ी हो!"

सोफिया—"इतनी जल्द! में जरा इस अन्धे का गाना सुनने लगी। सरमन कितनी देर हुआ होगा?"

क्लार्क—आध घण्टे से कम न हुआ होगा। लार्ड विशप के सरमन संक्षित होते है; पर अत्यन्त मनोहर। मैंने ऐस दिव्य, ज्ञान में डूबा हुआ, उपदेश आज तक न सुना था, इङ्गलैड में भी नहीं। खेद है, तुम न आई।"

सोफिया—"मुझे आश्चर्य होता है कि मैं यहाँ आध घण्टे तक खड़ी रही!" इतने में मि० ईश्वर सेवक अपने परिवार के साथ आकर खड़े हो गये। मिसेज सेवक ने क्लार्क को मातृस्नेह से देखकर यूछा-

"क्यों विलियम, सोफ़ी आज के सरमन के विषय में क्या कहती है?"

क्लार्क—“यह तो अंदर गई ही नहीं।"

मिसेज सेवक ने सोफिया को अवहेलना की दृष्टि से देखकर कहा—“सोफी, यह तुम्हारे लिए शर्म की बात है।"

सोफी लज्जित होकर बोली—“मामा, मुझसे बड़ा अपराध हुआ। मैं इस अन्धे का गाना सुनने के लिए जरा रुक गई, इतने में सरमन समाप्त हो गया!"

ईश्वर सेवक—"बेटी, आज का सरमन सुधा-तुल्य था, जिसने आत्मा को तृप्त कर दिया। जिसने नहीं सुना, वह उम्र-भर पछतायेगा। प्रभु, मुझे अपने दामन में छिपा। ऐसा सरमन आज तक न सुना था।"

मिसेज सेवक—“आश्चर्य है कि उस स्वर्गोपम सुधा-वृष्टि के सामने तुम्हें यह ग्रामीण गान अधिक प्रिय मालूम हुआ!"

प्रभु सेवक—"मामा, यह न कहिए। ग्रामीणों के गाने में कभी-कभी इतना रस होता है, जो बड़े-बड़े कवियों की रचनाओं में भी दुर्लभ है।"

मिसेज सेवक—“अरे, यह तो वही अन्धा है, जिसकी जमीन हमने ले ली है। आज यहाँ कैसे आ पहुँचा? अभागे ने रुपये न लिये, अब गली-गली भीख मांगता फिरता है।"

सहसा सूरदास ने उच्च स्वर से कहा—"दुहाई है पंचो, दुहाई है। सेवक साहब और राजा साहब ने मेरी जमीन जबरजस्ती छीन ली है। मुझ दुखिया की फरियाद कोई नहीं सुनता। दुहाई है!”

"दुरबल को न सताइए, जाकी मोटी हाय;
मुई खाल की साँस सों सार भसम ह जाय।"

क्लार्क ने मि० सेवक से पूछा—"उसकी जमीन तो मुआवजा देकर ली गई थी न? अब यह कैसा झगड़ा है?"