पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/२५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२६१
रंगभूमि


सहनसील है, पर आदमी ही है, क्रोध आ गया होगा। झूठा इलजाम सुनकर क्रोध आता ही है। कहीं गुस्से में आकर इन्हें मार न बैठे। पकड़ पायेगा, तो प्रान ही लेकर छोड़ेगा।" सुभागी भैरो की मार खाती थी, घर से निकाली जाती थी, लेकिन यह मजाल न थी कि कोई बाहरी आदमी भैरो को कुछ कहकर निकल जाय। उसका मुँह नोच लेती। उसने भैरो को जगाया नहीं, द्वार खोलकर पूछा-"क्या है सूरे, क्या कहते हो?"

सूरदास के मन में बड़ी प्रबल उत्कंठा हुई कि इससे पूछू, रात तुझ पर क्या बीती; लेकिन जब्त कर गया-मुझे इससे वास्ता? उसकी स्त्री है। चाहे मारे, चाहे दुलारे। मैं कौन होता हूँ पूछनेवाला बोला-“भैरो क्या अभी सोते हैं? जरा जगा दे, उनसे कुछ बातें करनी हैं।"

सुभागी-"कौन बात है, मैं भी सुनूँ।"

सूरदास--"ऐसी ही एक बात है, जरा जगा तो दे।”

सुभागी-"इस बखत जाओ, फिर कभी आकर कह देना।"

सूरदास-"दूसरा कौन बखत आयेगा। मैं सड़क पर जा बौठूँगा कि नहीं। देर न लगेगी।"

सुभागी-“और कभी तो इतने तड़के न आते थे, आज ऐसी कौन-सी बात है?"

सूरदास ने चिढ़कर कहा-"उसी से कहूँगा, तुझसे कहने की बात नहीं है।" सुभागी को पूरा विश्वास हो गया कि यह इस समय आपे में नहीं है। जरूर मार पीट करेगा। बोली-“मुझे मारा-पीटा थोड़े ही था; बस वहीं जो कुछ कहा-सुना, वही कह-सुनकर रह गये।"

सूरदास-"चल, तेरे चिल्लाने की आवाज मैंने अपने कानों सुनी।"

सुभागी-"मारने को धमकाता था; बस, मैं जोर से चिल्लाने लगी।"

सूरदास-"न मारा होगा। मारता भी, तो मुझे क्या, तू उसकी घरवाली है, जो चाहे, करे, तू जाकर उसे भेज दे। मुझे एक बात कहनी है।" जब अब भी सुभागी न गई, तो सूरदास ने भैरो का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारना शुरू किया। कई हाँकों के बाद भैरो की आवाज सुनाई दी-"कौन है, बैठो, आता हूँ।"

सुभागी यह सुनते ही भीतर गई और बोली-“जाते हो, तो एक डंडा लेते जाओ, सूरदास है, कहीं लड़ने न आया हो।"

भैरो—"चल बैठ, लड़ाई करने आया है! मुझसे तिरिया-चरित्तर मत खेल।"

सुभागी—“मुझे उसकी त्योरियाँ बदली हुई मालूम होती हैं, इसी से कहती हूँ।"

भैरो—“यह क्यों नहीं कहती कि तू उसे चढ़ाकर लाई है। वह तो इतना कीना नहीं रखता। उसके मन में कभो मैल नहीं रहता।"

यह कह भैरो ने अपनी लाठी उठाई और बाहर आया। अंधा शेर भी हो, तो उसका क्या भय १ एक बच्चा भी उसे मार गिरायेगा।

१७