जब ताहिरअली कांस्टेबिलों के साथ जेल की तरफ जा रहे थे, तो उन्हें माहिर अली ताँगे पर सवार आता हुआ दिखाई दिया। उनका हृदय गद्गद् हो गया। आँखों से आँसू की झड़ी लग गई। समझे, माहिर मुझसे मिलने दौड़ा चला आता है। शायद आज ही आया है, और आते-ही-आते यह खबर पाकर बेकरार हो गया है। जब ताँगा समीप आ गया, तो वह चिल्लाकर रोने लगे। माहिरअली ने एक बार उन्हें देखा, लेकिन न सलाम-बंदगी की, न ताँगा रोका, न फिर इधर दृष्टिपात किया, मुँह फेर लिया, मानों देखा ही नहीं। ताँगा ताहिरअली की बगल से निकल गया। उनके मर्मस्थल से एक सर्द आह निकल गई। एक बार फिर चिल्लाकर रोये। वह आनंद की ध्वनि थी, यह शोक का विलाप; वे आँसू की बूंदें थीं, ये खून की।
किंतु एक ही क्षण में उनकी आत्मवेदना शांत हो गई-"माहिर ने मुझे देखा ही न होगा। उसकी निगाह मेरी तरफ उठी जरूर थी, लेकिन शायद वह किसी खयाल में डूबा हुआ था। ऐसा होता भी तो है कि जब हम किसी खयाल में होते हैं, तो न सामने की चीजें दिखाई देती हैं, न करीब की बातें सुनाई देती हैं। यही सबब है। अच्छा ही हुआ कि उसने मुझे न देखा, नहीं तो इधर मुझे नदामत होती, उधर उसे रंज होता।"
उधर माहिरअली मकान पर पहुंचे, तो छोटे भाई आकर लिपट गये। ताहिर अली के दोनों बच्चे भी दौड़े, और "माहिर चाचा आये' कहकर उछलने-कूदने लगे। कुल्सूम भी रोती हुई निकल आई। सलाम-बंदगी के पश्चात् माहिर अपनी माता के पास गये। उसने उन्हें छाती से लगा लिया।
माहिर-"तुम्हारा खत न जाता, तो अभी मैं थोड़े ही आता। इम्तहान के बाद ही तो वहाँ मजा आता है, कभी मैच, कभी दावत, कभी सैर, कभी मुशायरे। भाई साहब को यह क्या हिमाकत सूझी!"
जैनब-"बेगम साहब की फरमाइशें कैसे पूरी होती! जेवर चाहिए, जरदा चाहिए, जरी चाहिए, कहाँ से आता! उस पर कहती हैं, तुम्हीं लोगों ने उन्हें मटियामेट किया। पूछो, रोटी-दाल में ऐसा कौन-सा छप्पन टके का खर्च था। महीनों सिर में तेल डालना नसीब न होता था। अपने पास से पैसे निकालो, तो पान खाओ। उस पर इतने ताने!"
माहिर-"मैंने तो स्टेशन से आते हुए उन्हें जेल जाते देखा। मैं तो शर्म के मारे उनसे कुछ न बोला, बंदगी तक न की। आखिर लोग यही न कहते कि इनका भाई जेलखाने जा रहा है! मुँह फेरकर चला आया। भैया रो पड़े। मेरा दिल भी मसोस उठा, जी चाहता था, उनके गले लिपट जाऊँ; लेकिन शर्म आ गई। थानेदार कोई मामूली आदमी नहीं होता। उसका शुमार हुक्काम में होता है। इसका खयाल न करूँगा, तो बदनाम हो जाऊँगा।"
जैनब—"छ महीने की सजा हुई है।"
माहिर—"जुर्म तो बड़ा था, लेकिन शायद हाकिम ने रहम किया।"
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