नाक में आ रही थी, बघार को आवाज भी सुनाई दे रही थी, लेकिन बड़ी देर तक कोई उसके बच्चों को बुलाने न आया, तो वह बैन कर-करके रोने लगी। उसे मालूम हो गया कि घरवालों ने साथ छोड़ दिया और अब मैं अनाथ हूँ, संसार में कोई मेरा नहीं। दोनों बच्चे रोते-रोते सो गये थे। उन्हीं के पैताने वह भी पड़ रही। भगवान्, ये दो-दो बच्चे, पास फूटी कौड़ी नहीं, घर के आदमियों का यह हाल, यह नाव कैसे पार लगेगी!
माहिरअली भोजन करने बैठे, तो मामा से पूछा—"भाभी ने भी कुछ बाजार से मँगवाया है कि नहीं?"
जैनब—"मामा से मँगवायेंगी, तो परदा न खुल जायगा! खुदा के फजल से साबिर सयाना हुआ। गुपचुप सौदे वही लाता है, और इतना घाघ है कि लाख फुसलाओ, पर मुँह नहीं खोलता।"
माहिर—“पूछ लेना। ऐसा न हो कि हम लोग खाकर सोयें, और वह बेचारी रोजे से रह जायँ।"
जैनब—"ऐसी अनीली नहीं हैं, वह हम-जैसों को चरा लायें। हाँ, पूछना मेरा फर्ज है, पूछ लूंँगी।"
रकिया—"सालन और रोटी किस मुंँह से खायेंगी, उन्हें तो जरदा-शीरमाल चाहिए।"
दूसरे दिन सबेरे दोनों बच्चे बावर्चीखाने में गये, तो जैनब ने ऐसी कड़ी निगाहों से देखा कि दोनों रोते हुए लौट आये। अब कुल्सूम से न रहा गया। वह झलाकर उठी और बावर्चीखाने में जाकर मामा से बोली—“तूने बच्चों को खाना क्यों नहीं दिया रे? क्या इतनी जल्द काया-पलट हो गई ? इसी घर के पीछे हम मिट्टी में मिल गये और मेरे लड़के भूखों तड़पें, किसी को दर्द न आये?"
मामा ने कहा —"तो आप मुझसे क्या बिगड़ती है, मैं कौन होती हूँ, जैसा हुक्म पाती हूँ, वैसा करती हूँ।"
जैनब अपने कमरे से बोली—"तुम मिट्टी में मिल गई, तो यहाँ किमने घर भर लिया? कल तक कुछ नाता निभा जाता था, वह भी तुमने तोड़ दिया। बनियें के यहाँ से कर्ज जिंस आई, तो मुँह में दाना गया। सौ कोस से लड़का आया, तुमने बात तक न पूछी। तुम्हारी नेकी कोई कहाँ तक गाये।"
आज से कुल्सूम को रोटियों के लाले पड़ गये। माहिरअली कभी दोनों भाइयों को लेकर नानबाई की दूकान से भोजन कर आते, कभी किसी इष्ट-मित्र के मेहमान हो जाते। जैनब और रकिया के लिए मामा चुपके चुपके अपने घर से खाना बना लाती। घर में चूल्हा न जलता। नसीमा और साबिर प्रातःकाल घर से निकल जाते। कोई कुछ दे देता, तो खा लेते। जैनब और रकिया की सूरत से ऐसे डरते थे, जैसे चूहा बिल्ली से। माहिर के पास भी न जाते। बच्चे शत्रु और मित्र को खूब पहचानते हैं। अब वे प्यार के भूखे नहीं, दया के भूखे थे । रही कुल्सूम, उसके लिए गम ही काफी था। वह सीना-