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रंगभूमि


सदिच्छा, सबका एक ही अभीष्ट है। हमारा प्रथम और अंतिम उद्देश्य शासन करना है।"

मि० क्लार्क का लक्ष्य सोफी की ओर इतना नहीं, जितना विनय की ओर था। वह विनय को अलक्षित रूप से धमका रहे थे। खुले हुए शब्दों में उनका आशय यही था कि हम किसी के मित्र नहीं हैं, हम यहाँ राज्य करने आये हैं, और जो हमारे कार्य में बाधक होगा, उसे हम उखाड़ फेकेंगे।

सोफी ने कहा-"अन्याय-पूर्ण शासन शासन नहीं, युद्ध है।"

क्लार्क-"तुमने फावड़े को फावड़ा कह दिया। हममें इतनी सजनता है। अच्छा, मैं तुमसे फिर मिलूँगा।"

यह कहकर उन्होंने घोड़े को एड़ लगाई। सोफिया ने उच्च स्वर से कहा-"नहीं, कदापि न आना; मैं तुमसे नहीं मिलना चाहती।"

आकाश मेघ मंडित हो रहा था। संध्या से पहले संध्या हो गई थी। मि० क्लार्क अभी गये ही थे कि मि० जॉन सेवक की मोटर आ पहुँची। वह ज्यों ही मोटर से उतरे कि सैकड़ों आदमी उनकी तरफ लपके। जनता शासकों से दबती है, उनकी शक्ति का ज्ञान उस पर अंकुश जमाता रहता है। जहाँ उस शक्ति का भय नहीं होता, वहाँ वह आपे से बाहर हो जाती है। मि० सेवक शासकों के कृपापात्र होने पर भी शासक नहीं थे। जान लेकर गोरखों के कैंप की तरफ भागे, सिर पर पाँव रखकर दौड़े; लेकिन ठोकर खाई, गिर पड़े। मि० क्लार्क ने घोड़े पर से उन्हें दौड़ते देखा था। उन्हें गिरते देखा, तो समझे, जनता ने उन पर आघात कर दिया। तुरत गोरखों का एक दल उनकी रक्षा के निमित्त भेजा। जनता ने भी उग्र रूप धारण किया-चूहे बिल्ली से लड़ने को तैयार हुए। सूरदास अभी तक चुपचाप खड़ा था। यह हलचल सुनी, तो भयभीत होकर भैरो से बोला, जो एक क्षड़ के लिए उसे न छोड़ता था- "भैया, तुम मुझे जरा अपने कंधे पर बैठा लो, एक बार और लोगों को समझा देखू। क्यों लोग यहाँ से हट नहीं जाते। सैकड़ों बार कह चुका, कोई सुनता ही नहीं। कहीं गोली चल गई, तो आज उस दिन से भी अधिक खून-खच्चर हो जायगा।"

भैरो ने सूरदास को कंधे पर बैठा लिया। इस जन-समूह में उसका सिर बालिश्त-भर ऊँचा हो गया। लोग इधर-उधर से उसकी बातें सुनने दौड़े। वीर-पूजा जनता का स्वाभाविक गुण है। ऐसा ज्ञात होता था कि कोई चक्षु-हीन यूनानी देवता अपने उपासकों के बीच खड़ा है।

सूरदास ने अपनी तेज-हीन आँखों से जन-समूह को देखकर कहा-“भाइयो, आप लोग अपने-अपने घर जायँ। आपसे हाथ जोड़कर कहता हूँ, घर चले जायँ। यहाँ जमा होकर हाकिमों को चिढ़ाने से क्या फायदा? मेरी मौत आवेगी, तो आप लोग खड़े रहेंगे, और मैं मर जाऊँगा। मौत न आवेगी, तो मैं तोपों के मुँह से बचकर निकल आऊँगा। आप लोग वास्तव में मेरी सहायता करने नहीं आये, मुझसे दुसमनी करने