पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६६
रंगभूमि


मूखों के पास युक्तियाँ नहीं होती, युक्तियों का उत्तर वे हठ से देते हैं। युक्ति कायल हो सकती है, नरम हो सकती है, भ्रांत हो सकती है; हठ को कौन कायल करेगा?

सूरदास की जिद से ताहिरअली को क्रोध आ गया। बोले—"तुम्हारी तकदीर में भीख माँगना लिखा है, तो कोई क्या कर सकता। इन बड़े आदमियों से अभी पाल नहीं पड़ा है। अभी खुशामद कर रहे हैं, मुआवजा देने पर तैयार हैं, लेकिन तुम्हारा "मिजाज नहीं मिलता, और यही जब कानूनी दाँव-पेंच खेलकर जमीन पर कजा कर लेंगे, दो-चार सौ रुपये बरायनाम मुआवजा दे देंगे, तो सीधे हो जाओगे। मुहल्लेवालों पर भूले बैठे हो। पर देख लेना, जो कोई पास भी फटके। साहब यह जमीन लेंगे जरूर, चाहे खुशी से दो, चाहे रोकर।”

सूरदास ने गर्व से उत्तर दिया—“खाँ साहब, अगर जमीन जायगी, तो इसके साथ मेरी जान भी जायगी।”

यह कहकर उसने लकड़ी सँभाली, और अपने अड्ड पर आ बैठा।

उधर दयागिर ने जाकर नायकराम से यह समाचार कहा। बजरंगी भी बैठा था। यह खबर सुनते ही दोनों के होश उड़ गये। सूरदास के बल पर दोनों उछलते रहे, उस दिन ताहिरअली से कैसी बातें की, और आज सूरदास ही ने धोका दिया। बजरंगी ने चतित होकर कहा—"अब क्या करना होगा पण्डाजी, बताओ?"

नायकराम—“करना क्या होगा, जैसा किया है, वैसा भोगना होगा। जाकर अपनी घरवाली से पूछो। उसी ने आज आग लगाई थी। जानते तो हो कि सूरे मिठुआ पर जान देता है, फिर क्यों भैरो की मरम्मत नहीं की। मैं होता, तो कभी भैरो को दो-चार खरी-खोटी सुनाये बिना न जाने देता, और नहीं तो दिखाने के लिए सहो। उस बेचारे को भी मालूम हो जाता कि मेरी पीठ पर है कोई। आज उसे बड़ा रंज हुआ है। नहीं तो जमीन बेचने का कभी उसे ध्यान ही न आया था।”

बजरंगी—"अरे, तो अब कोई उपाय निकालोगे, या बैठकर पिछली बातों के नाम को रोयें!"

नायकराम—“उपाय यही है कि आज सूरे आये, तो चलकर उसके पैरों पर गिरो, उसे दिलासा दो, जैसे राजी हो, वैसे राजी करो, दादा-भैया करो, मान जाय तो अच्छा, नहीं तो साहब से लड़ने के लिए तैयार हो जाओ, उनका कब्जा न होने दो, जो कोई जमीन के पास आये, मारकर भगा दो। मैंने तो यही सोच रखा है। आज सूरे को अपने हाथ से बनाके दूधिया पिलाऊँगा, और मिठुआ को भर-नेट मिठाइयाँ खिलाऊँगा। जब न मानेगा, तो देखी जायगी।"

बजरंगी—"जरा मियाँ साहब के पास क्यों नहीं चले चलते? सूरदास ने उससे न जाने क्या-क्या बातें की हों। कहीं लिखा-पढ़ी कराने को कह आया हो, तो फिर चाहे कितनी ही आरजू-बिनती करोगे, कभी अपनी बात न पलटेगा।"