जॉन सेवक—"अब तक आपने इस मद में जो रकम वसूल की है, वह आमदनी में दिखाइए। हिसाब किताब के मामले में मैं ज़रा भी रिआयत नहीं करता।
ताहिर--"हुजूर, बहुत छोटी रकम होगी।"
जॉन सेवक—"कुछ मुज़ायका नहीं, एक ही पाई सही; वह सब आपको भरनी पड़ेगी। अभी वह रकम छोटी है, कुछ दिनों में उसकी तादाद सैकड़ों तक पहुँच जायगी। उस रकम से मैं यहाँ एक संडे स्कूल खोलना चाहता हूँ। समझ गये? मेंम साहब की यह बड़ी अभिलाषा है। अच्छा चलिए, वह जमीन कहाँ है, जिसका आपने जिक्र किया था?
गोदाम के पीछे की ओर एक विस्तृत मैदान था। यहाँ आस-पास के जानवर चरने आया करते थे।जॉन सेवक यह ज़मीन लेकर यहाँ सिगरेट बनाने का एक कारखाना खोलना चाहते थे। प्रभु सेवक को इसी व्यवसाय की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अमेरिका भेजा था। जॉन सेवक के साथ प्रभु सेवक और उनकी माता भी ज़मीन देखने चलीं। पिता और पुत्र ने मिलकर जमीन का विस्तार नापा। कहाँ कारखाना होगा, कहाँ गोदाम, कहाँ दस्तर, कहाँ मैनेजर का बँगला, कहाँ श्रमजीवियों के कमरे, कहाँ कोयला रखने की जगह और कहाँ से पानी आयेगा, इन विषयों पर दोनों आदमियों में देर तक बातें होती रहीं। अंत में मिस्टर सेवक ने ताहिरअली से पूछा-"यह किसकी ज़मीन है?"
ताहिर—“हुजूर, यह तो ठीक नहीं मालूम, अभी चलकर यहाँ किसी से पूछ लूँगा; शायद नायकराम पण्डा की हो।"
साहब—"आप उससे यह जमीन कितने में दिला सकते हैं?"
ताहिर—"मुझे तो इसमें भी शक है कि वह इसे बेचेगा भी।"
जॉन सेवक—"अजी, बेचेगा उसका बाप, उसकी क्या हस्ती है? रुपये के सत्तरह आने दीजिए, और आसमान के तारे मँगवा लीजिए। आप उसे मेरे पास भेज दीजिए, मैं उससे बातें कर लूँगा।"
प्रभु सेवक—"मुझे तो भय है कि यहाँ कच्चा माल मिलने में कठिनाई होगी। इधर लोग तंबाकू की खेती कम करते हैं।"
जॉन सेवक—"कच्चा माल पैदा करना तुम्हारा काम होगा। किसान को ऊख या जौ-गेहूँ से कोई प्रेम नहीं होता। वह जिस जिन्स के पैदा करने में अपना लाभ देखेगा, वही पैदा करेगा। इसकी कोई चिंता नहीं है। खाँ साहब, आप उस पण्डे को मेरे पास कल ज़रूर भेज दीजिएगा।"
ताहिर—“बहुत खूब, उसे कहूँगा।"
जॉन सेवक—"कहूँगा नहीं, उसे भेज दीजिएगा। अगर आपसे इतना भी ने ही सका, तो मैं समझूँगा, आपको सौदा पटाने का ज़रा भी ज्ञान नहीं।"
मिसेज़ सेवक—(अंगरेजी में) "तुम्हें इस जगह पर कोई अनुभवी आदमी रखना चाहिए था।"