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पृष्ठ:रंगभूमि.djvu/९६

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रंगभूमि


बिगड़ जाता है। इतनी बड़ी रियारत है, महेंद्र सारा बोझा उसी के सिर डाल देते हैं। उन्हें तो म्युनिसिपैलिटी ही से फुरसत नहीं मिलती। बेचारी आय-व्यय का हिसाब लिखते-लिखते घबरा जाती है, उस पर एक-एक पैसे का हिसाब! महेंद्र को हिसाब रखने की धुन है। जरा-सा भी फर्क पड़ा, तो उसके सिर हो जाते हैं। इंदु को अधिकार है, जितना चाहे खर्च करे, पर हिसाब जरूर लिखे। राजा साहब किसी की रू-रियायत नहीं करते। कोई नौकर एक पैसा भी खा जाय, तो उसे निकाल देते हैं चाहे उसने उनकी सेवा में अपना जीवन बिता दिया हो। यहाँ मैं इंदु को कभी कड़ी निगाह से भी नहीं देखती, चाहे घो का घड़ा लुढ़का दे। वहाँ जरा जरा-सी बात पर राजा साहब की घुड़कियाँ सुननी पड़ती हैं। बच्ची से बात नहीं सही जाती। जवाब तो देती नहीं-और यही हिंदू स्त्री का धर्म है—पर रोने लगती है। वह दया की मूर्ति है। कोई उसका सर्वस्व खा जाय, लेकिन ज्यों ही उसके सामने आकर रोया, बस उसका दिल पिघला। सोफी, भगवान् ने मुझे दो बच्चे दिये, और दोनों ही को देखकर हृदय शीतल हो जाता है। इन्दु जितनी ही कोमल-प्रकृति और सरल-हृदया है, विनय उतना ही धर्मशील और साहसी है। बकना तो जानता ही नहीं। मालूम होता है, दूसरों की सेवा करने के लिए ही उसका जन्म हुआ है। घर में किसी टहलनी को भी कोई शिकायत हुई, और सब काम छोड़कर उसकी दवा-दारू करने लगा। एक बार मुझे ज्वर आने लगा था। इस लड़के ने तीन महीने तक द्वार का मुँह नहीं देखा। नित्य मेरे पास बैठा रहता, कभी पंखा झलता, कभी पाँव सहलाता, कभी रामायण और महाभारत पढ़कर सुनाता। कितना कहती, बेटा, जाओ घूमो-फिरो; आखिर ये लौडियाँ-वाँदियाँ किस दिन काम आयेंगी, डॉक्टर रोज आते ही हैं, तुम क्यों मेरे साथ सती होते हो; पर किसी तरह न जाता। अब कुछ दिनों से सेवा-समिति का आयोजन कर रहा है। कुँवर साहब को जो सेवा-समिति से इतना प्रेम है, वह विनय ही के सत्संग का फल है, नहीं तो आज के तीन साल पहले इनका-सा विलासी सारे नगर में न था। दिन में दो बार हजामत बनती थी। दरजनों धोबी और दरजो कपड़े धोने और सीने के लिए नौकर थे। पेरिस है एक कुशल धोबी कपड़े सँवारने के लिए आया था। कश्मीर और इटली के बाबरची खाना पकाते थे। तसवीरों का इतना व्यसन था कि कई बार अच्छे चित्र लेने के लिए इटली तक की यात्रा की। तुम उन दिनों मंसूरी रही होगी। सैर करने निकलते, तो सशस्त्र सबारों का एक दल साथ चलता। शिकार खेलने की लत थी, महानों शिकार खेलते रहते। कभी कश्मीर, कभी बीकानेर, कभी नैपाल, केवल शिकार खेलने जाते। विनय ने उनकी काया ही पलट दी। जन्म का विरागी है। पूर्व-जन्म में अवश्य कोई ऋपि रहा होगा।"

सोफी—"आपके दिल में सेवा और भक्ति के इतने ऊँचे भाव कैसे जाग्रत हुए? यहाँ तो प्रायः रानियाँ अपने भोग-विलास में ही मग्न रहती हैं।"

जाह्नवी—"बेटी, यह डॉक्टर गंगुली के सदुपदेश का फल है। जब इंदु दो साल