पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/११०

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भारण किया है।" तो नत्थू चाचा उत्तर देते-"आज कल मारण करवा कौन सकता है। मारण में हजारों रुपये खर्च होते हैं। इसके अतिरिक्त मैं बाल-बच्चेदार प्रादमी, में मारण करता भी नहीं। गृहस्थ को मारण नहीं करना चाहिए।"

"परन्तु आप चाहें तो कर सकते हैं।"

"हाँ अाँ आँ--कर तो सब कुछ सकते हैं।"

"वशीकरण, उच्चाटन आदि तो करते होंगे?"

"क्यों नहीं, यह सब करते हैं। वशीकरण तो अभी हाल में ही किया है। एक बड़े आदमी हैं उनकी पत्नो पति के उदासीन व्यवहार से बहुत दुखी थी। उसने पति का वशीकरण हमसे करवाया। हमने किया अब आज कल यह दशा है कि जितना पानी वह पिलाती है उतना ही पति महाराज पीते हैं---गुलाम हो गया, गुलाम! तब से वह स्त्री हमें बहुत मानती है।" इस प्रकार पण्डित जी के कहने से ही उनके अलौकिक कार्यों की जानकारी प्राप्त होती थी।

एक दिन एक व्यक्ति ने नत्थू चाचा के मुँह पर कह दिया--"अाज कल के शाक्त केवल मांँस-मदिरा खाने-पीने भर के शाक्त हैं---और उनमें कोई तत्व नहीं है।"

यह सुन कर नत्थू चाचा भाग हो गये। बोले---"अभी लड़के हो, बच्चे किसी शाक्त से पाला नहीं पड़ा किसी दिन पाला पड़ जायगा तो सब भूल जाओगे। मेरी बात दूसरी है---पर और किसी शाक्त के सामने यह बात कहना भी नहीं ।”

"कहेंगे तो क्या करेगा?"

"अाज कल के लड़कों में यह बड़ा दोष है कि हर बात में टांग अड़ाते हैं और बहस करने को तैयार रहते हैं। और इसी में कभी खता खा जाते हैं तब रोते हैं।"

एक व्यक्ति बोला---"अच्छा नत्थू चाचा मनुष्य का मारण आप नहीं करते; परन्तु पशुओं को मारण तो आप कर सकते हैं।"