पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१२४

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जितना पैसा रंग-गुलाल में खर्च किया जायेगा उतना यदि किसी अच्छे काम में लगाया जाय तो राष्ट्र की सेवा हो जाय।"

"मेरी समझ में वह पैसा कम्यूनिस्टों को दान कर दिया जाय!" एक कामरेड महाशय बोले।

अपने राम बोले---"हियर! हियर! इससे बढ़के और पुण्य क्या होगा! परन्तु क्या कामरेड लोग यह आश्वासन दे सकते हैं कि जो पैसा पुण्य करके आप लोगों को देगा उसे अगले जन्म में वह पैसा---छः सात गुना होकर मिलेगा?"

"हम लोग तो अगला जन्म मानते ही नहीं।"

"तब तो आपको पुण्य-दान मिल चुका। दान लेना हो तो अगला जन्म अवश्य मानिए।"

"और दान देने वाला छै गुना सातगुना कैसे मांग सकता है? इतनी सूदखोरी उचित नहीं।"

"यह सूदखोरी नहीं, ब्लैक मार्केटिंग है। एक रुपया देकर सात मिलने की आशा रखना क्या कहलाएगा?"

"अपने शास्त्रों में तो यही लिखा हैं।" अपनेराम ने कहा।

"शास्त्रों की निर्धारित की हुई ब्याज की दर मान्य नहीं हो सकती।"

"यह दर तो ईश्वर की ओर से नियुक्त की गई है।"

"इसीलिये तो हम लोग ईश्वर को नहीं मानते। ईश्वर सबसे बड़ा व्याज लेना वाला है। जुवारियों के लिये सुना था कि बड़ा लम्बा सूद देते हैं, सबेरे सौ ले जाते हैं तो शाम को एक सौ पाँच दे जाते हैं। परन्तु ईश्वर ने उनके भी कान कतर लिए।"

उनके पश्चात् एक अन्य सज्जन आये उन्होंने कहना आरम्भ किया---"सज्जनो! मैं ये व्यर्थ की बातें पसन्द नहीं करता। मैं तो सीधी बात कहता हूँ कि होली का त्योहार बन्द कर दिया जाए, यद्यपि हमारी घरवाली बन्द करने के विरुद्ध है।"

"क्यों?" प्रश्न किया गया।