मैकदे ( शराबखाने ) पर टूट कर बरसे घटा बरसात की।"
"खूब! अच्छा शेर हैं।"
"आसमाँ से अब शराबे नाव बरसे क्या अजब, आँख में लाती है मस्ती यह घटा बरसात की।"
इसी प्रकार कुछ देर तक शेरख्वानी के साथ मदिरापान होता रहा सब लोग मदिरोन्मत हो गये। सहसा ब्रजनन्दन उठ कर खड़ा होगया। आखें रक्तिम, गाल चढ़े हुए, बाछें खिली हुईं। खड़े होकर वह बोला---"जरा एक शेर इस गुलाम का भी सुनिये।"
"हां जरा इस चिड़ीतन के गुलाम का भी शेर सुनिये।" एडवोकेट साहब हँसते हुए बोले।
“यह चिड़िया का गुलाम नहीं है, हुकुम का गुलाम है।" दर साहब ने कहा।
"अच्छा कह बे, हम हुकम देते हैं।" एडवोकेट साहब ने कहा।
ब्रजनन्दन ने मटक कर भाव बताते हुए कहा---"दुख्तेरिज (द्राक्षनान्दिनी अर्थात शराब) पर क्यों न हू कुर्बान में सौ जान से!" इससे जरा गौर कीजिएगा---किससे? ( बोतल की ओर उंगली उठाकर) इससे! हाँ! यही तो खास बात है—--शीशे में यह शराब नहीं, लालपरी है। हाय! हाय! लालपरी......!"
"अबे दूसरा मिसरा तो कह काले देव!" दर साहब बोले।
"खूब बोला राजा इन्दर ( इन्द्र) का साला। हा! हा! हा!" ब्रजनन्दन पागल की भांँति हंसता हुआ बोला। "राजा हूं मैं कौम का इन्दर मेरा नाम बिन परियों की दीद (दर्शन) के नहीं मुझे आराम।"
"जब से नत्था चिरंजी को मण्डली टूटी तबसे इसकी कद्र जाती रही! वरन इसके भी जमाने थे। लोग इकन्नो-दुवन्नी फेंकते थे, दस-बारह माने तो यह इसी तरह पैदा कर लेता था।"
सबने कहकहा लगाया।
"टुम काला आडमी किस माफिक बोलटा, हम टुमारी बाट सम-