पुरुष की वयस चालीस के लगभग होगी---सांवला रंग, कद नाटा, शरीर का पतला, कोट-पेन्ट-कालर-नेकटाई से लैस। स्त्री बैंगनीरङ्ग की बनारसी साड़ी और उसी कपड़े का जम्पर तथा पैरों में सेण्डल पहने थी। पुरुष ने आगे बढ़कर चन्द्रकान्त से पूछा---"साड़ी पिन है?"
"हाँ! ऊपर आजाइये।"
आगे आगे स्त्री और पीछे पुरुष। दोनों दुकान पर चढ़ कर अन्दर आगये। पुरुष तो खड़ा रहा---स्त्री कुर्सी पर बैठ गई। चन्द्रकान्त ने एक बड़ा बक्स खोल कर स्त्री के हाथ में दे दिया। इस बक्स में अनेक डिजाइन तथा मूल्य की साड़ीपिनें लगी हुई थीं। स्त्री कुछ क्षण तक उन्हें देख कर पुरुष से बोली---"जरा देखो!"
"मैं क्या देखूँ जो तुम्हें पसन्द हो वह ले लो।"
"कुछ सलाह तो दो।"
"पसन्द में सलाह का क्या काम!” यह कह कर पुरुष चन्द्रकान्त की ओर देख कर किञ्चित मुस्कराया। चन्द्रकान्त भी मुस्करा दिये और बोले---"ठीक कहा आपने।"
स्त्री एक पिन की ओर संकेत करके पुरुष से बोली---"यह पिन अच्छी है?"
पुरुष पिन की ओर देख कर बोला---"मुझे तो सभी अच्छी लगती हैं।"
स्त्री ने चन्द्रकान्त से पूछा---"इसके क्या दाम हैं?"
चन्द्रकान्त ने पिन में लगा हुआ छोटा सा टिकिट देख कर कहा---"पचीस रुपया।"
"गिनी गोल्ड का है?" पुरुष ने पूछा।
"हाँ बीच में जो सफेद नगीना है वह पुखराज है।"
"पुखराज तो पीला होता है" स्त्री ने कहा।
चन्द्रकान्त शिष्टता--पूर्वक हँसकर बोले---"पीला भी होता है और सफेद भी।"
"मैं तो हीरा समझी थी।" स्त्री ने कहा।