पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१४१

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"इतना बड़ा हीरा होता तो इस पिन के दाम दो सौ रुपये होते।"

"अच्छा तो इसे ही निकाल दीजिये। यही ले लिया।" अन्तिम वाक्य स्त्री ने पुरुष की ओर देख कर कहा।

"ठीक है!" चन्द्रकान्त से वह बोला---'दाम कुछ कम कर दीजिये।"

"बिल्कुल एक दाम हैं। हमारे यहाँ मोलतोल नहीं होता।" चन्द्रकान्त ने पिन निकाल कर एक छोटी डिब्बी में रखते हुए कहा।

पुरुष ने जेब से मनी बेग निकाला और पचीस रुपये गिन कर चन्द्रकान्त को दिये। चन्द्रकान्त ने रसीद दी।

दोनों बिदा हुये।

( २ )

पं० चन्द्रकान्त जवान आदमी है। वयस ३०, ३२ वर्ष के लगभग है। चन्द्रकान्त, उन्हीं जैसे चरित्र के लोगों में रंगीली तबियत के आदमी प्रसिद्ध हैं। शरीफाना ढंग से परस्त्री तथा वेश्यागमन करने वाले को कुछ लोग रंगीली तबियत का आदमी कहते हैं। पं० चन्द्रकान्त इसी ढंग के रंगीले आदमी हैं।

सन्ध्या का समय था। पं० चन्द्रकान्त अपनी दुकान पर विराजमान थे। इसी समय उनके एक घनिष्ट मित्र जो उन्हीं के समान रंगीले थे आये। चन्द्रकान्त मुस्कराकर बोले---"आओ रजनी गन्धा।"

चन्द्रकान्त ने इनका नाम रजनी गन्धा रख दिया था। अपने घनिष्ट मित्रों में यह महाशय इसी नाम से पुकारे जाते थे। रजनीगन्धा नाम इस कारण पड़ा कि यह महाशय रात में ही निकलते थे। सन्ध्या को स्नान करके, अच्छे वस्त्र पहन कर तथा इत्र-सेन्ट से सुवासित होकर घूमने निकलते थे और ग्यारह-बारह बजे घर वापिस जाते थे। घर के रईस तथा धनाढ्य थे।

रजनी गन्धा महाशय बैठ कर बोले---"क्या हो रहा है।"