"हां यह बात तो है।"
"मामूली वह न लेगी।"
"एक हलवाई भी ठीक करना है---
बाग में खाना-पीना होगा।"
"माजूम भी बनवाइयेगा?"
"रईस महोदय मुँह बनाकर बोले---माजूम! बनवा लेंगे थोड़ी ही, हमें तो भांँग से प्रेम नहीं है---तुम जानते ही हो।"
"हाँ आपकी तो बोतल चलेगी। लेकिन वह आजकल सब से महंँगी है।"
"महंगी हो या सस्ती---बिना उसके तो आनन्द ही न आयेगा।"
"हाँ! आप तो उसी का व्यवहार करते हैं।"
"भांग का नशा गधा नशा है, बोतल का नशा बादशाह नशा है।"
"यह तो अपनी अपनी पसन्द है।"
'हाँ पसन्द की बात तो है ही।"
यह रईस महोदय उन लोगों में हैं जिनके प्रत्येक त्योहार तथा खुशी के कार्य में वैश्या तथा मदिरा का समावेश रहता है। जिस प्रकार भोजन के लिए नमक आवश्यक होता है उसी प्रकार इन लोगों की खुशी में वेश्या तथा मदिरा का होना आवश्यक है।
एक नई रोशनी के सज्जन का निवास स्थान! यह सज्जन नवीन प्रचार विचार के हैं। नेता, समाज सुधारक, साहित्यिक-सब कुछ बनने का दावा करते हैं--इनकी मण्डली भी इसी ढंग की है।
"होली आ गई और होली आते ही लोगों ने बकना आरम्भ किया। ऐसा खराब त्योहार है कि भगवान बचावें।"
"इन लोगों को बकने में शरम भी नहीं लगती।"
"त्योहार है--इसमें सब माफ है।"
"मरा ससुरा ऐसा त्योहार। कीचड़ उछाले, फोहश बकें, खामखाह लोगों से छेड़छाड़ करें---यह त्योहार है।"