(१)
रायबहादुर साहब अपने हवाली-मवालियों सहित विराजमान थे। इसी समय एक अन्य महोदय पधारे। इन्हें देखकर रायबहादुर साहब मुस्कराकर बोले---"आओ भई वर्माजी! कहो क्या समाचार है?"
"समाचार अच्छे हैं, गांधी-जयन्ती की सजावट हो रही है।"
"भई एक बात समझ में नहीं आती। गांधी-जयन्ती तो प्रतिवर्ष आती है, परन्तु इस बार जितनी धूमधाम है उतनी पहले कभी नहीं हुई। इस बार की जयन्ती में क्या खसूसियत है?" रायबहादुर साहब ने पूछा।
एक सज्जन बोले---"भई यह तो कोई कांग्रेस वाला ही बता सकता है।"
"भई वजह कुछ भी हो, लेकिन लोगों में उत्साह खूब है।"
"उत्साह तो हुआ ही चाहे और होना भी चाहिए।"
"गांधीजी जब पचास वर्ष के हुए थे तब कुछ हुआ था?"
"खयाल नहीं पड़ता। उस दफा तो अवश्य हुआ होगा।"
"हमें तो खयाल नहीं पड़ता कि कुछ हुआ था।"
"पिछली बातों को छोड़िये। इस बार आप रोशनी करेंगे?"
"आप लोग सलाह दीजिए।"
"इसमें सलाह की क्या आवश्यकता---जैसी आपकी श्रद्धा हो!"
"रोशनी करें तो सजावट भी करें।"