"खिताब छोड़ने पर हाकिम लोग नाराज होजायँगे।"
"हाँ नाराज तो अवश्य होंगे, पर आपका क्या कर लेंगे?"
"अरे भई कभी कोई काम पड़ा तो कलस्टर साहब बात भी न करेंगे।"
"यदि आप एम० एल० ए० हो गये तो हुक्काम लोग आपको खुशामद करेंगे---यह भी तो देखिये।"
"हाँ यह बात तो पक्की है।"
"तो बस फिर हटाइये झगड़ा।"
"अच्छा आज जरा इस पर विचार कर लें।"
( २ )
रायबहादुर साहब ने खूब सोच-विचार करके खिताब छोड़ देना ही निश्चय किया। अतः उन्होंने रायबहादुरी का खिताब त्याग दिया। एक दिन नगर-निवासियों ने एक स्थानीय पत्र में यह समाचार बड़े आश्चर्य के साथ पढ़ा कि रायबहादुर सम्पत्तिलाल ने अपना खिताब वापस कर दिया और कांग्रेस में सम्मिलित हो गये।
इस समाचार के प्रकाशित होते ही संपत्तिलाल के पास बधाइयाँ आने लगीं। कुछ काँग्रेसी बधाई देने गये। सम्पत्तिलाल ने उनकी बड़ी खातिर की। इस प्रकार कांग्रेसी लोगों का आवागमन सम्पत्तिलाल के यहाँ हो गया और घनिष्ठता उत्पन्न हो गई। अब सम्पत्तिलाल खद्दरधारी हो गये।
क्रमशः यह नियम हो गया कि कदाचित ही कोई ऐसा अशुभ दिन जाता हो जब कि चार-छः कांग्रेसी सम्पत्तिलाल के यहाँ भोजन न करते हों। दो चार ने तो समय ताक लिया था। सम्पत्तिलाल के यहाँ भोजन के समय पहुँच जाते थे।
एक दिन सम्पत्तिलाल बोले---"यदि एसेम्बली के लिए हम खड़े हों तो कैसा।"
"वाहवा! बड़ा अच्छा रहे आप जैसों को तो जाना हो चाहिए।"