पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/१८२

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"आप तो अमीर आदमी हैं आपको मुसीबत से क्या सरोकार! मैं गरीब हूँ, बड़े-बड़े कठिन समय मैंने पार किए;पर ऐसा समय कभी नहीं पड़ा।"

"क्या बतावें इससे तो वहीं बने रहते तो अच्छा था, जो होता देखा जाता। मरते भी तो पाराम से तो मरते। अब सोचता हूँ कि भाग कर आना गलत हुआ।"

"जैसी होनी होती है वैसी ही बुद्धि भी हो जाती है।"

"लेकिन मोटर होने के कारण समझे थे कि निकल जायँगे---सो मोटर ही दगा दे गई।'

"आपने ठीक सोचा था! तेल होता तो आप आराम से चले जाते।"

इसी प्रकार ये लोग बातें करते रहे। रात में कभी कुछ देर को सो जाते, कभी उठ कर बैठ जाते। इस प्रकार वह रात पार हुई। सवेरे उठकर फिरे चले। चलते-चलते प्यास लगती तो गला सींच लेते थे। बोतल का पानी समाप्त हो रहा था। बाबू साहब बोले---"पानी समाप्त हो जायगा तब क्या होगा?"

रामभजन बोला---"जो भगवान की इच्छा होगी। रास्ते में कहीं पानी मिला तो ठीक है।"

"पानी तो इधर-उधर कहीं अवश्य होगा।"

"पर अपने को मालूम जो नहीं है।"

"यही तो मुश्किल हैं।"

दोपहर तक पानी समाप्त हो गया। दोपहर को ये लोग पुनः ठहर गये और दो घण्टे आराम करके फिर चले।

बाबू साहब बोले---"बिना पानी के तो बे-मौत मर जायँगे। खाना चाहे दो रोज न मिले।"

इस प्रकार बातें करते हुए जा रहे थे कि एक स्थान पर चार देहाती बर्मी दिखाई पड़े। ये लोग एक पानी के चश्मे पर पहरा दे रहे थे। चारों के पास तलवारें थीं। रामभजन बोला---"पानी तो है, परन्तु