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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/४१

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देते हैं। शास्त्र की आज्ञा है--इसमें क्यों और काहे का क्या काम।"

"हमारी समझ में तो नंगे बदन यदि लघुशङ्का करने बैठे तो जनेऊ ऊपर चढ़ा ले चाहे कान पर या गले में। क्योंकि लघुशङ्का करने बैठने पर नंगे बदन होने से जनेऊ आगे आ जाता है। उस दशा में उसके अपवित्र होने की सम्भावना रहती है। परन्तु यदि कपड़े पहने हो तो जनेऊ कान पर चढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि उस दशा में जनेऊ आगे नहीं गिरता--कपड़ों में दबा रहता है !"

"सुनो इन अँग्रेजी पढ़ों की बातें ! क्या कानून निकाला। अरे बच्चा यह हैं शास्त्र की बातें ऋषि लोगों की बनायी हुई इसमें तुम अपनी अक्किल न भिड़ाओ। ब्राह्मण को सूने मस्तक बाहर नहीं निकलना चाहिए--इसका तुम क्या मतलब लगाते हो?'

"बात यह है कि सूना मस्तक होने से जाति का पता नहीं लगता। प्राचीनकाल में ब्राह्मणों की यही दो तीन पहिचानें थीं, शिख-सूत्र और तिलक। बाहर निकलने में शिखा, टोपी-पगिया इत्यादि में छिप जाती हैं और जनेऊ कपड़ों के नीचे छिप जाता है। ऐसी दशा में केवल तिलक से ही मालूम पड़ सकता है कि यह ब्राह्मण है। इसीलिए तिलक लगाया जाता था। परन्तु आजकल जब कि सभी जातियाँ तिलक लगाने लगी हैं तब ब्राह्मणों के तिलक का कोई महत्व नहीं रहा।"

मिश्रजी उच्च स्वर से हँसकर बोले--"भाई वाह ! क्या कुलाव मिलाये हैं। भइया ! यह हैं धर्मशास्त्र की बातें--इनमें तुम्हारी बुद्धि नहीं लड़ सकती।"

युवक--"अब आप मानते ही नहीं।" कहकर मुस्कराता हुआ चला गया।

( २ )

मिश्रजी का एक पुत्र था। वयस २२, २३ के लगभग। एफ० ए० तक पढ़कर एक कपड़े की फर्म में काम करने लगा था। कांग्रेसी होने के नाते खद्दरधारी था तथा छुमाछूत का विरोधी।