सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

आविष्कार

( १ )

प्रोफेसर चन्द्रायण विज्ञान के प्राचार्य थे। वैसे तो वह पदार्थ तथा रसायन-शास्त्र दोनों में प्रवीण थे; परन्तु उन्हें विशेष अनुराग रसायनशास्त्र से था।

उन्होंने अपने घर में अपनी एक निजी प्रयोगशाला बना रक्खी थी। वह जो कुछ खा-पीकर बचा पाते थे, वह सब इस प्रयोगशाला पर खर्च कर देते थे।

रात के बारह बज चुके थे। प्रोफेसर साहब नित्यानुसार अपनी प्रयोगशाला में काम कर रहे थे। इसी समय स्प्रिट-लेम्प पर एक परी-क्षण-नलिका को गर्म कर रहे थे। पत्नी की आहट पाकर नलिका पर दृष्टि जमाये हुए ही उन्होंने कहा-"अाज अभी सोई नहीं?"

पली जमुहाई लेते हुए बोली—"नींद ही नहीं पड़ती।"

"क्यों

"क्या पता ! अकेले पड़े-पड़े नींद भी नहीं आती। कोई बात करने वाला होना ही चाहिए।"

सहसा नलिका से प्रकाश का एक पुज निकल कर वायु में विलीन हो गया।

"तुम्हें अपने इस खेलवाड़ से ही छुट्टी नहीं मिलती।" ४०