वर्ष की युवती हो जायगी।"
यह कहकर प्रोफेसर ने शीला का मुख चूम लिया !
शीला विश्वास तथा अविश्वास के मध्य में झूलती हुई बोली—"क्या कहते हो।”
"मैं सत्य कहता हूँ शीला! अब तुम पर फिर से नवयौवन आ जायगा।"
शीला विश्वास की ओर ढुलकती हुई प्रसन्न मुख होकर बोली "सच ?"
"बिल्कुल सच !"
"तो लाओ पांच बूँद पिला दो।"
"अभी नहीं ! उसके पहले तुम्हारे शरीर की शुद्धि करनी पड़ेगी। पेट तथा आंतों को बिल्कुल साफ करना पड़ेगा।"
"परन्तु तुम्हें यह कैसे विश्वास कि, जो वस्तु तुम बनाना चाहते थे, वह बन गई।"
प्रोफेसर उसे मेज के पास ले गया। मेज पर एक पिंजरे में चूहे का एक जोड़ा था।
"इस जोड़े को देखो शीला!"
"ये चूहे तो बड़े सुन्दर और चपल हैं।"
"परन्तु कल ये दोनों पिंजरे के एक कोने में मृतप्राय पड़े हुए थे मैंने इन्हें जो रासायनिक पदार्थ खिलाये उससे ये दोनों वैसे ही हो गये थे जैसा कि, एक सत्तर बरस का बूढ़ा हो जाता है।"
"फिर क्या हुआ ?"
कल मैंने इस पदार्थ की चौथाई-चौथाई बूँद इन दोनों को दी थी—अब आज इन्हें देखो—इनमें कितना जीवन है। अब तो ये दोनों बच्चे से जान पड़ते हैं।
"बड़ी अद्भुत वस्तु है। इससे तो हम लाखों रुपये कमा लेंगे?"
"रुपये की बात सोचती हो शीला ! यह पदार्थ क्या रुपयों से खरीदा जा सकता है? संसार भर की धनराशि भी इसकी एक बूँद