विस्फारित हो गये। वह बोली---"क्या सचमुच मैं ऐसी हो गई हूँ।"
"बिलकुल! प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता। अपने हाथ- पैर देखो।"
शीला ने अपनी बाँहें तथा अन्य अङ्ग देखे और प्रसन्न होकर बोली---"ये तो वैसे ही हो गये जैसे कि सोलह-सत्रह बरस की उमर में थे।" यह कहकर शीला ने हर्ष-विभोर होकर नेत्र मूंद लिये।
( ३ )
क्रमशः जब प्रोफेसर की पत्नी के काया-कल्प की बात लोगों को ज्ञात हुई तो वे प्रोफेसर को लगे घेरने! बड़े-बड़े लखपती बुड्ढाञ्ची प्रोफेसर की खुशामद करने लगे कि, वह वस्तु उन्हें भी दी जाय और जितना रुपया वह चाहें ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य वैज्ञानिक भी प्रोफेसर से मिल कर उस पदार्थ के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आने लगे। परन्तु प्रोफेसर ने सबको एक ही उत्तर दिया---"संयोगवश मेरी पत्नी मेरी प्रयोगशाला का कोई पदार्थ खाने से ऐसी हो गई। मुझे अभी पता नहीं लगा कि, वह पदार्थ क्या है। मैं उसका अन्वेषण कर रहा हूँ।" लोग निराश होकर वापस चले जाते थे।
एक दिन शीला ने कहा---"तुम यह पदार्थ कब खाओगे?"
"मैं!" प्रोफेसर ने कुछ चौंककर कहा।
"हाँ, तुम।"
"परन्तु मेरा तो ऐसा कोई इरादा नहीं है।"
"क्यों?"
"मुझे यौवन की इच्छा नहीं। यौवन पाने से मेरा चित्त अपने लक्ष्य की ओर से हट जायगा।"
"परन्तु तुम्हारा लक्ष्य तो तुम्हें मिल गया?"
"अभी बहुत कुछ बाकी है शीला! मैं एक ऐसे पदार्थ की खोज में हूँ जो मनुष्य के जीवन को यथेच्छा दीर्घ कर सके।"