पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/५७

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है। उस पर लिखा है---"मैं संसार का त्याग कर रहा हूं, मेरी खोज न की जाय! मैं अपना शेष जीवन किसी निर्जन स्थान में प्रकृति के साथ क्रीड़ा करके बिताऊँगा। क्योंकि जब तक मनुष्य में स्वार्थ-त्याग, विश्व- प्रेम तथा मानव-कल्याण की भावना उत्पन्न नहीं होती, तब तक लोकहित की दृष्टि से कोई भी आविष्कार किया जाय उसका सदुपयोग न होकर केवल दुरुपयोग ही होगा।"