पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/६६

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दद्दू ने हँसकर पूछा----"सो कैसे?

"एक अबला का उद्धार किया, एक भले आदमी की आबरू बचाई।"

"आबरू-बावरू तो खैर क्या बचाई! हाँ भागने नहीं पाई बस इतना ही समझो।"

"यह भी थोड़ी बात नहीं है। क्या पुलीस में दे दिया।'

"नहीं मार-पीट कर छोड़ दिया। पुलीस में देने से सब जगह बात फैल जाती।"

"सुना मार तो ऐसी पड़ी है कि जन्म भर याद रहेगी। कथा-वाचक जी तो भाग ही गये।"

"अब भी क्या रह सकते थे? परन्तु हमारी कथा अच्छी रही।"

'बहुत बढ़िया? आपने तो कथा-वाचक जी की ही कथा बना दी।"

दददू हँसने लगे।