पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/६९

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"अच्छी बात है। हमारा इतना ख्याल रखते हो---यही क्या कम है।"

"ख्याल रखना ही पड़ता है। तुम हमारे नौकर हो।"

चीफ साहब बेहयाई की हँसो हँसकर बोले---"ठीक कहते हो। हम पब्लिक के नौकर तो हई हैं।"

"पब्लिक जाय चूल्हे-भाड़ में। हम पब्लिक की हैसियत से थोड़े हो कहते हैं। हम तो इसलिए कहते हैं कि हम तुम लोगों को तनखाह देते हैं---हर महीने कलदार!"

"अच्छा ऐसा ही सही---जैसे तुम खुश रहो।"

यह कहकर चीफ साहब सिगरेट धकधकाते हुए चल दिये।

( २ )

सुपरिन्टेडेन्ट पुलीस ( कप्तान साहब ) मि० राबिन्सन एक अच्छे अफसर समझे जाते थे। न्यायप्रिय आदमी थे। हिन्दुस्तानी भाषा बहुत साफ बोलते थे। सहसा यह भान नहीं होता था कि कोई यूरोपियन बोल रहा है।

प्रातःकाल के नौबजे थे। कप्तान साहब शहर के दो रईसों से वार्तालाप कर रहे थे। एक रईस महोदय कह रहे थे---"हुजूर के होते हुए अगर शहर की यह हालत हो तो बड़े ताज्जुब की बात है।"

"हमको इस बात का खुद बहुत खयाल है और हम जल्दी ही कोई इन्तजाम करते हैं।"

"पुलीस के अमाल से हुजूर की बदनामी होती है और हुजूर की बदनामी सुनकर हम लोगों को बड़ी तकलीफ पहुँचती है क्योंकि हम लोग जानते हैं कि हुजूर बहुत इन्साफ-पसन्द और नेक हाकिम हैं।"

"शुक्रिया! हम स्काटलैंड यार्ड ( लंदन को कोतवाली ) के आदमी हैं पंडित साहब! स्काटलैंड यार्ड अपनी ईमानदारी और कारगुजारी के लिए दुनिया भर में मशहूर है।" कप्तान साहब ने कहा।

"ऐसे ही हाकिमों की तो यहाँ जरूरत है।"

"लेकिन यहाँ की पुलीस से हम परेशान हैं । कान्स्टेबिल से लेकर