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पृष्ठ:रक्षा बंधन.djvu/७२

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उसने भी उसे टोका। स्त्री ने उससे भी यही कहा कि वह अपने प्रेमिका से मिलने आई थी।

कान्स्टेबिल बोला—"चलो थाने पर।"

"थाने पर न ले जाओ—यह लो।"

यह कहकर स्त्री ने पांच रुपये कान्स्टेबिल की ओर बढ़ाये। कान्स्टेबिल ने एक लप्पड़ स्त्री के मुख पर मारकर कहा—"रिश्वत देती है हरामजादी। हम रिश्वत लेते हैं? ऐसी रिश्वत हम हराम समझते हैं—चल थाने।"

कान्स्टेबिल स्त्री को थाने पर ले गया। दारोगा जी को जगा कर उनके सामने स्त्री को पेश किया। वहाँ भी स्त्री ने वही कथा सुनाई। दारोगाजी ने उसे हवालात में बन्द करने का हुक्म दिया। स्त्री ने दो सोने की चूड़ियाँ उतार कर दारोगा जी को दी।

दारोगा जी चूड़ियां देखकर बोले—"सोने की ही हैं न, कलई तो नहीं है?"

"हुजूर के साथ ऐसा धोखा नहीं कर सकती, एक दिन का काम थोड़ा ही है।" यह कहकर स्त्री चल दी।

स्त्री के जाने के बीस मिनट बाद ही पुलिस कप्तान मि० राबिन्सन ने थाने पर छापा मारा। उसी समय एक डी० एस० पी० ने चौकी पर छापा मारा। दोनों जगह चूड़ियाँ बरामद हुई। चीफ कान्स्टेबिल तथा थानेदार साहब गिरफ़्तार कर लिये गये।

चूड़ियों के भीतर की ओर कप्तान साहब के नाम के प्रथमाक्षर अत्यन्त महीन खुदे हुए थे।

दूसरे दिन कप्तान साहब ने अपने बंगले पर उस कान्स्टेबिल को तलब किया जिसने स्त्री के लप्पड़ मारा था। उस से कप्तान साहब बोले "हमने तुमको चीफ कान्स्टेबिल बनाया। ऐसी ही ईमानदारी से काम करते रहना।"

कान्स्टेबिल ने सेल्यूट कर के कहा—"हुजूर के एकबाल से हमेशा ऐसी ही ईमानदारी और बफादारी से काम करूंगा।"