पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७२
रघुवंश।

की राज्य-लक्ष्मी भी, अज के पास जाने के लिए, राजा रघु की आज्ञा की प्रतिक्षा करने लगी।

इतने में विदर्भ-देश के राजा भोज ने अपनी बहन इन्दुमती का स्वयंवर करना चाहा। अनेक राजाओं को उसने निमन्त्रण भेजा । अज के गुणों की उसने बड़ी प्रशंसा सुनी थी । इस कारण उसे स्वयंवर में बुलाने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हुआ। इस डर से कि साधारण रीति पर निमन्त्रण भेजने से कहीं ऐसा न हो कि अज न आवे, उसने अपना एक विश्वासपात्र दूत राजा रघु के पास रवाना किया और अज-कुमार को बड़े ही आदर से स्वयंवर में बुलाया। दूत ने आकर राजा भोज का निमन्त्रण-पत्र रघु को दिया। उसे पढ़ कर रघु बहुत प्रसन्न हुआ। उसने मन में कहा -अज की उम्र अब विवाह-योग्य हो गई है ; सम्बन्धःभी बुरा नहीं । इससे इस निमन्त्रण को स्वीकारही कर लेना चाहिए। यह सोच कर उसने बहुत सी सेना के साथ अज को राजा भोज की समृद्धि-पूर्ण राजधानी को भेज दिया।

अजकुमार के प्रस्थान करने पर, मार्ग में, उसके आराम के लिए पहले ही से जगह जगह डेरे लगा दिये गये। उनमें सोने के लिए अच्छे अच्छे पलँग, पीने के लिए शीतल जल और खाने के लिए सुस्वादु पदार्थ भी रख दिये गये । अज से मिलने के लिए दूर दूर से आये हुए प्रजा-जनों की दी हुई भेटों से वे पट-मण्डप और भी जगमगा उठे। इससे वे शहरों के क्रीडा-स्थानों की तरह शोभा -सम्पन्न दिखाई देने लगे। उन्होंने विहार करने के लिए बनाये गये उद्यानों को भी मात कर दिया।

कई दिन बाद, चलते चलते, अजकुमार नर्मदा के निकट जा पहुंचा। वहाँ उसने देखा कि नदी के किनारे किनारे नक्तमाल नाम के सैकड़ों वृक्ष खड़े हुए हैं और जल-स्पर्श होने के कारण शीतल हुई वायु उन्हें धीरे धीरे हिला रही है। ऐसी आराम की जगह देख कर अज ने, धूलि लिपटी हुई ध्वजा वाली अपनी सेना को,वहीं, नर्मदा के तट पर, ठहर जाने की आज्ञा दी।

उस समय एक जङ्गली हाथी ने नर्मदा की धारा में गोता लगाया था। अज के सैनिकों ने उसे गोता लगाते न देखा था। परन्तु जिस जगह