पृष्ठ:रघुवंश.djvu/१३६

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छठा सर्ग।

आहा ! इस कन्यारत्न के अलौकिक रूप का क्या कहना! उसका अनुपम सौन्दर्य ब्रह्मा की कारीगरी का सर्वोत्तम नमूना था । रङ्ग-भूमि में पहुँचते ही वह दर्शकों की हज़ारों आँखों का निशाना हो गई। सब की दृष्टि सहसा उसी की ओर खिंच गई। और,स्वयंवर में आये हुए राजा लोगों का तो कुछ हाल ही न पूछिए । उन्होंने तो अपने मन, प्राण और अन्तःकरण सभी उस पर न्यौछावर कर दिये । उनकी अन्तरात्मा, आँखों की राह से इन्दुमती पर जा पहुँची। शरीर मात्र उनका सिंहासन पर रह गया । वे लोग काठ की तरह निश्चल-भाव से अपने आसनों पर बैठे हुए उसे देखने लगे। कुछ देर बाद, जब उनका चित्त ठिकाने हुआ तब,उन्होंने अनुराग-सूचक इशारों के द्वारा इन्दुमती का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहा। उन्होंने मन में कहाः-लाओ,तब तक,अपने मन का अभिलाष प्रकट करने के लिए,शृङ्गारिक चेष्टाओं से ही दूती का काम लें। यदि हम लोग कमल के फूल,हाथ की उँगलियाँ और गले में पड़ी हुई मुक्ता-माला आदि को,पेड़ों के कोमल पल्लवों की तरह, हिला डुला कर इन्दुमती को यह सूचित करें कि हम लोग तुझे पाने की हृदय से इच्छा रखते हैं तो बहुत अच्छा हो। प्रीति-सम्पादन करने के लिए इससे बढ़ कर और कोई बात ही नहीं । इस निश्चय को उन्होंने शीघ्र ही कार्य में परिणत करके दिखाना आरम्भ कर दिया।

एक राजा के हाथ में कमल का नाल-सहित एक फूल था। क्रीडा के लिए योंही उसने उसे हाथ में रख छोड़ा था । नाल को दोनों हाथों से पकड़ कर वह उसे घुमाने-चक्कर देने लगा। ऐसा करने से फूल के पराग का भीतर ही भीतर एक गोल मण्डल बन गया और चञ्चल पंखुड़ियों की मार पड़ने से आस पास मण्डराने वाले,सुगन्ध के लोभी,भौरे दूर उड़ गये । यह तमाशा उसने इन्दुमती का मन अपने ऊपर अनुरक्त करने के लिए किया । परन्तु फल इसका उलटा हुआ । इन्दुमती ने उसके इस काम को एक प्रकार का कुलक्षण समझा । उसने सोचा:-जान पड़ता है,इसे व्यर्थ हाथ हिलाने की आदत सी है । अतएव, यह मेरा पति होने योग्य नहीं।

एक और राजा बहुत ही छैल छबीला बना हुआ बैठा था। उसके