पृष्ठ:रघुवंश.djvu/२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०
भूमिका।

सुन्दरता और मधुरता है। वह भाषा बोल-चाल में व्यवहार करने लायक है। कालिदास को इन्हीं श्रेष्ठ गुणों से युक्त होकर ऐसे समय में जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसके साथ इनकी स्वाभाविक सहा-नुभूति थी।

"कालिदास ने अपने अपूर्व कवि-कौशल से अनूठे अनूठे पौराणिक दृश्यों पर नये नये बेलबूटे लगा कर उनकी सुन्दरता और भी बढ़ा दी है। आँख, कान, नाक, मुँह आदि ज्ञानेन्द्रियों की तृप्ति के विषय, तथा कल्पना और प्रवृत्ति, यही बाते काव्यरचना के मुख्य उपादान हैं। कालिदास ने इन सामग्रियों से एक आदर्श-सौन्दर्य की सृष्टि की है। कालिदास के काव्यों से स्वर्गीय सौन्दर्य की आभा झलकती है। वहाँ सभी विषय सौन्दर्य के शासन के अधीन हैं। धार्मिक भाव और बुद्धि भी सौन्दर्य-शासन में रक्खी गई है। परन्तु इतने पर भी, अन्यान्य सौन्दर्य-उपासना-पूर्ण कविताओं के स्वाभाविक दोषों से कालिदास की कविता बची हुई है। अन्य कविताओं की तरह इनकी कविता धीरे धीरे कमज़ोर नहीं होती गई। उसमें दुराचार की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। इनकी कविता अपनी नायिकाओं की काली कुटिल अलकों और भ्र-भङ्गियों में भी अत्यन्त उलझी हुई नहीं जान पड़ती। कालिदास की रचना इन सब दोषों से बची हुई है। समुचित शब्दों के प्रयोग और काव्य के चम- त्कार की ओर ही इनका अधिक ध्यान था।"

अरविन्द बाबू की इस सम्मति से हम पूर्णतया सहमत हैं।


'कालिदास और शेक्सपियर।'

रचनानैपुण्य और प्रतिभा के विकाशसम्बन्ध में कालिदास की बराबरी का यदि और कोई कवि हुआ है तो वह शेक्सपियर ही है। भिन्न भिन्न देशों में जन्म लेकर भी सारे संसार को अपने कवित्व-कौशल से एक सा मुग्ध करनेवाले यही दो कवि हैं। इनकी रचनायें इस बात का प्रमाण हैं कि इन दोनों के हृदय-क्षेत्र में एकही सा कवित्व-बीज वपन हुआ था। इनके विचार, इनके भाव, इनकी उक्तियाँ अनेक स्थलों में परस्पर लड़ गई हैं। जिस वस्तु को जिस दृष्टि से कालिदास ने देखा है प्रायः उसी दृष्टि से शेक्सपियर ने भी देखा है। शेक्सपियर ने अपने नाटकों में भिन्न भिन्न