सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रघुवंश.djvu/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७६
रघुवंश।


ने नभ नामक पुत्र पाया। उसका शरीर नभस्तल (आकाश) के समान श्याम था। नभोमास, अर्थात् सावन के महीने, की तरह वह अपनी प्रजा का प्यारा हुआ।

नल बड़ा ही धर्मिष्ठ था। अतएव नभ के बड़े होने पर जब नल ने देखा कि वह राजा होने योग्य है तब उत्तर-कोशल का राज्य उसे दे दिया। इस समय नल बूढ़ा हो चला था। बुढ़ापा आ गया देख उसने परलोक बनाने का विचार किया। उसने सोचा कि अब ऐसा काम करना चाहिए जिसमें फिर देह धारण करने का कष्ट न उठाना पड़े। यह निश्चय करके वह मृगों के साथ वन में विहार करने के लिए चला गया-वह वान-प्रस्थ हो गया।

राजा नभ के पुण्डरीक नामक पुत्र हुआ। पुण्डरीक नाम का दिग्गज जैसे अन्य हाथियों के लिए अजेय है वैसे ही कुमार पुण्डरीक भी, बड़े होने पर, अन्य राजाओं के लिए अजेय हो गया। पिता के शान्तिपूर्वक शरीर छोड़ने पर राज-लक्ष्मी ने उसका इस तरह सेवन किया जिस तरह कि पुण्डरीक (सफेद कमल) लिये हुए लक्ष्मी पुण्डरीकाक्ष (विष्णु) का सेवन करती है।

पुण्डरीक बड़ा ही प्रतापी राजा हुआ। उसका धन्वा कभी विफल न गया। जिस काम के लिए उसने उसे उठाया उसे करके ही छोड़ा। इस पुण्डरीक नामक अमोघधन्वा राजा के क्षेमधन्वा नामक बड़ा ही शान्तिशील पुत्र हुआ। ज्योंही वह प्रजाजनों की रक्षा करने और उन्हें क्षेमपूर्वक रखने योग्य हुआ त्योंही पिता पुण्डरीक ने उसे पृथ्वी सौंप दी और आप पहले से भी अधिक शान्त बन कर तपस्या करने चला गया।

क्षेमधन्वा के देवताओं के समान प्रभावशाली देवानीक नामक पुत्र हुआ। वह ऐसा प्रतापी हुआ कि देवताओं तक में उसकी प्रसिद्धि हुई- स्वर्ग तक में उसके यशोगीत गाये गये। वीर वह इतना हुआ कि रण में कभी पीछे न रहा; सदा सेना के आगे ही उसने कदम रक्खा। उसने अपने पिता क्षेमधन्वा की बड़ी सेवा की। ऐसा गुणी और सुशील पुत्र पा कर पिता ने अपने भाग्य को हृदय से सराहा। उधर पुत्र देवानीक ने भी, अपने ऊपर पिता का अपार प्रेम देख कर, अपने को धन्य माना।

क्षेमधन्वा में संख्यातीत गुण थे। गुणों की वह साक्षात् खानि था।