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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१२७

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छठा सर्ग।

है, और कंघी-चोटी न करने से उसकी रूखी अलकें पाण्डु-वर्ण कपोलों पर पड़ी लटका करती हैं। फिर भी इस राजा की यज्ञ-क्रिया बन्द नहीं होती; और, इन्द्राणी को वियोगिनी बना कर इन्द्र को इसके यज्ञों में जाना ही पड़ता है। यदि इस नृप-श्रेष्ठ के साथ विवाह करने की तेरी इच्छा हो तो उसे पूर्ण कर ले, और इसकी पुष्पपुर (पटना) नामक राजधानी में प्रवेश करते समय, इसके महलों की खिड़कियों में बैठी हुई पुरवासिनी स्त्रियों के नेत्रों को, अपने दर्शनों से, आनन्दित कर"।

सुनन्दा के मुख से मगधेश्वर की ऐसी प्रशंसा सुन कर कृशाङ्गी इन्दुमती ने आँख उठा कर एक बार उसकी तरफ़ देखा तो ज़रूर, पर बोली कुछ भी नहीं। बिना अधिक झुके ही उसने उसे एक सीधा सा प्रणाम किया। उस समय दूब लगी हुई उसकी महुए की माला कुछ एक तरफ़ को हट गई और वह उस राजा को छोड़ कर आगे बढ़ गई।

यह देख कर, पवन की प्रेरणा से ऊँची उठी हुई लहर जिस तरह मानससरोवर की हँसी को एक कमल के पास से हटा कर दूसरे कमल के पास ले जाती है, उसी तरह, सुवर्णदण्ड धारण करने वाली वह द्वारपालिका इन्दुमती को दूसरे राजा के पास ले गई। उसके सामने जाकर सुनन्दा फिर बोली:—

"यह अङ्ग देश का राजा है! इसे तू साधारण राजा मत समझ। इसके रूप-लावण्य आदि को देख कर अप्सरायें तक इसे पाने की इच्छा करती हैं। इसके यहाँ पर्वताकार हाथियों की बड़ी अधिकता है। गज-शास्त्र के आचार्य्य गौतम आदि विद्वान् उन हाथियों को सिखाने के लिए इसके यहाँ नौकर हैं। यद्यपि यह भूलोक ही का राजा है, तथापि इसका ऐश्वर्य स्वर्ग लोग के स्वामी इन्द्र के ऐश्वर्य्य से कम नहीं। स्वर्ग का सुख इसे भूमि पर ही प्राप्त है। इसने अपने शत्रुओं का संहार करके उनकी स्त्रियों को बेहद रुलाया है। उनके वक्षःस्थलों पर बड़े बड़े मोतियों के समान आँसू इसने क्या गिराये, मानो पहले तो इसने उनके मुक्ता-हार छीन लिये, फिर उन्हें बिना डोरे के करके उन्हीं को वे लौटा से दिये। लक्ष्मी और सरस्वती में स्वभाव ही से मेल नहीं। वे दोनों कभी एक जगह एकत्र नहीं रहती। परन्तु अपना सारा विरोधभाव भूल कर, वे दोनों ही इसकी आश्रित हो गई हैं। अब मैं देखती हूँ कि शरीर-कान्ति में लक्ष्मी से और मधुर वाणी में सरस्वती से तू किसी तरह कम नहीं। इस कारण उन दोनों के साथ बैठने योग्य, संसार में, यदि कोई तीसरी स्त्री है तो तूही है। अतएव यदि तू इस राजा को पसन्द कर लेगी तो एक ही से गुणोंवाली लक्ष्मी, सरस्वती और तू, तीनों की तीनों, एक ही जगह एकत्र हो जायँगी"।