का सम्मान किया। सुमित्रा को वे दोनों स्वयं भी चाहती थीं। सुमित्रा थी भी बड़ी सुशीला। हाथी की दोनों कनपटियों से बहने वाले मद की दो धाराओं पर भौंरी का प्रेम जैसे तुल्य होता है वैसे ही उन दोनों रानियों पर सुमित्रा का भी प्रेम सम था। वह उन दोनों का एक सा प्यार करती थी। इसी से वह उनकी भी प्यारी थी और इसी से उन्होंने सुमित्रा को अपने अपने हिस्से से प्रसन्नतापूर्वक खीर दे दी। खीर खाने से उनके, विष्णु के अंश से उत्पन्न हुआ, गर्भ रह गया। सूर्य्य की अमृता-नामक किरणें जिस तरह जलरूपी गर्भ धारण करती है उसी तरह उन्होंने भी उस गर्भ को लोक-कल्याण की इच्छा से, धारण किया।
तीनों रानियाँ साथही गर्भिणी हुईं। उनके शरीर की कान्ति पीली पड़ गई। वे, उस समय, अपने भीतर फलों के अङ्कुर धारण किये हुए अनाज के पौधों की शाखाओं के सदृश, शोभायमान हुईं। उन तीनों ने रात को स्वप्न में देखा कि शङ्ख, चक्र, गदा, खड्ग और धनुष लिये हुए बौने मनुष्य उनकी रक्षा कर रहे हैं। उन्होंने यह भी देखा कि गरुड़ अपने सुनहले पंखों की प्रभा को चारों तरफ़ फैला रहा है और बड़े वेग से उड़ने के कारण बादलों को अपने साथ खींचे लिये जा रहा है। वे उसी पर सवार हैं और आकाश-मार्ग से कहीं जा रही हैं। उन्होंने यह भी स्वप्न में देखा कि लक्ष्मीजी, कमलरूपी पङ्खा हाथ में लिये हुए, और नारायण से धरोहर के तौर पर प्राप्त हुई कौस्तुभ-मणि को छाती पर धारण किये हुए, उनकी सेवा कर रही हैं। उन्होंने यह भी देखा कि सातों ब्रह्मर्षि आकाश-गङ्गा में स्नान करके आये हैं और वेद-पाठ करते हुए उनकी पूजा कर रहे हैं। अपनी तीनों रानियों से इस तरह स्वप्नों के समाचार सुन कर राजा दशरथ को परमानन्द हुआ। वह कृतार्थ हो गया। उसने मन ही मन कहा:—"जगत्पिता भगवान् विष्णु के पिता होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त होगा। अतएव मेरे सदृश भाग्यवान् और कौन है"?
चन्द्रमा एक ही है। परन्तु, भिन्न भिन्न जगहों में भरे हुए निर्म्मल जलों में, उसके अनेकों प्रतिबिम्ब देख पड़ते हैं। इसी तरह सर्वव्यापी भगवान् भी यद्यपि एक ही हैं, तथापि, उन्होंने अपनी आत्मा के अनेक विभाग करके, एक एक अंश से, राजा दशरथ की एक एक रानी की कोख में, निवास किया। निदान दसवें महीने राजा की प्रधान रानी के पुत्र हुआ। रात के समय दिव्य ओषधि जैसे अन्धकार को दूर करनेवाला प्रकाश उत्पन्न करती है वैसे ही सती कौसल्या ने तमोगुण का नाश करनेवाला पुत्र उत्पन्न किया। बालक बहुत ही सुन्दर हुआ। उसके अत्यन्त अभिराम शरीर को देख कर पिता ने तदनुसार उसका नाम 'राम' रक्खा। इस नाम को संसार में सबसे अधिक