पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४३
दसवाँ सर्ग।

मङ्गलजनक समझ कर सभी ने बहुत पसन्द किया। यह बालक रघु-कुल में दीपक के सदृश हुआ। उसके अनुपम तेज के सामने सौरी-घर के सारे दीपक मन्द पड़ गये उनकी ज्योति क्षीण हो गई। प्रसूति के अनन्तर रामचन्द्र की माता के शरीर की गुरुता घट गई। वह दुबली हो गई। सेज पर सोते हुए राम से वह ऐसी शोभायमान हुई जैसी कि तट पर पड़े हुए पूजा के कमल-फूलों के उपहार से शरद ऋतु की पतली पतली गङ्गा शोभायमान होती है।

कैकेयी से भरत नामक बड़ा ही शीलवान् पुत्र उत्पन्न हुआ। विनय (नम्रभाव) से जैसे लक्ष्मी (धनसम्पन्नता) की शोभा बढ़ जाती है वैसे ही इस नव-जात पुत्र से कैकेयी की शोभा बढ़ गई। जो विशेषता विनय से लक्ष्मी में आ जाती है वही विशेषता भरत के जन्म से कैकेयी में भी आ गई।

अच्छी तरह अभ्यास की गई विद्या से जैसे प्रबोध और विनय, इन दो, गुणों की उत्पत्ति होती है वैसे ही सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम के दो जोड़िये पुत्रों की उत्पत्ति हुई।

भगवान् के जन्म ने सारे संसार को मङ्गलमय कर दिया। दुर्भिक्ष और अकाल-मृत्यु आदि आपदायें न मालूम कहाँ चली गईं। सम्पदाओं का सर्वत्र राज्य हो गया। पृथ्वी पर आये हुए भगवान् पुरुषोत्तम के पीछे स्वर्ग भी पृथ्वी पर उतर सा आया। रावण के भय से दिशाओं के स्वामी, दिक्‌पाल, कँपते थे। जब स्वामियों ही की यह दशा थी तब दिशाओं की क्या कहना? वे बेचारी तो और भी अधिक भयभीत थीं। अतएव जब उन्होंने सुना कि रावण के मारने के लिए परमपुरुष परमेश्वर ने अपनी आत्मा को, राम, लक्ष्मण आदि चार मूत्तियों में विभक्त करके, अवतार लिया है तब उनके आनन्द का पारावार न रहा। बिना धूल की स्वच्छ वायु के बहाने उन्होंने ज़ोर से साँस ली। उन्होंने मन में कहा:—"आह! इतने दिनों बाद हमारी आपदाओं के दूर होने का समय आया"। सूर्य्य और अग्नि भी उस राक्षस के अन्याय और अत्याचार से पीड़ित थे। अतएव, सूर्य्य ने विमल और अग्नि ने निर्धूम होकर मानों यह सूचित किया कि रामावतार ने हमारे भी हृदय की व्यथा कम कर दी—हम भी अब अपने को सुखी हुआ ही सा समझते हैं।

उस समय एक बात यह भी हुई कि राक्षसों की सौभाग्य-लक्ष्मी के अश्रु-बिन्दु, रावण के किरीट की मणियों के बहाने, पृथ्वी पर टपाटप गिरे। रावण के किरीट की मणियाँ क्या गिरीं, राक्षसों की सौभाग्य-लक्ष्मी ने आँसू