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पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/१९५

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दसवाँ सर्ग।


राजाओं के राजा महाराज दशरथ के भाग्य की कहाँ तक प्रशंसा की जाय। भगवान् के अंश से उत्पन्न हुए अपने चारों राजकुमारों से उसकी ऐसी शोभा हुई जैसी कि दैत्यों के खड्गों की धारें तोड़नेवाले अपने चारों दाँतों से ऐरावत हाथी की, अथवा रथ के जुयें के समान लम्बे लम्बे चार बाहुओं से विष्णु की, अथवा फल-सिद्धि से अनुमान किये गये साम, दाम आदि चारों उपायों से नीति-शास्त्र की।