बारहवाँ सर्ग।
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रावण का वध।
राजा दशरथ की दशा प्रातःकालीन दीपक की ज्योति की समता को पहुँच गई। सारी रात जलने के बाद, प्रातःकाल होने पर, दीपक में तेल नहीं रह जाता; वह सारा का सारा जल जाता है। बत्ती भी जल चुकती है, केवल उसका जलता हुआ छोर रह जाता है। उस समय दीपक की ज्योति जाने में ज़रा ही देर रहती है। दोही चार मिनट में वह बुझ जाती है। दशरथ की दशा ऐसी ही दीप-ज्योति के सदृश हो गई। इन्द्रियों से सम्बन्ध रखनेवाले विषयोपभोगरूपी स्नेह भोग चुकने पर, बुढ़ापे के अन्त को प्राप्त होकर, वे निर्वाण के पास पहुँच गये। उनके देह त्याग का समय समीप आ गया। यह देख कर बुढ़ापे ने दशरथ के कान के पास जाकर, सफ़ेद बालों के बहाने, कहा कि अब तुम्हें राम को राजलक्ष्मी सौंप देनी चाहिए। बुढ़ापे को कैकेयी का डर सा लगा। इसी से यह बात उसे धीरे से दशरथ के कान में कहनी पड़ी।
जितने पुरवासी थे, रामचन्द्र सब के प्यारे थे। अतएव रामचन्द्र के राज्याभिषेक की चर्चा ने उन सारे पुरवासियों को, एक एक करके, इस तरह प्रमुदित कर दिया जिस तरह कि पानी की बहती हुई नाली उद्यान के प्रत्येक पादप को प्रमुदित कर देती है। रामचन्द्र की अभ्युदय-वार्ता सन कर प्रत्येक पुरवासी परमानन्द में मग्न हो गया।
अभिषेक की तैयारियाँ होने लगीं। सामग्री सब एकत्र कर ली गई। इतने में एक विघ्न उपस्थित हुआ। क्रूरहृदया कैकेयी ने दशरथ को शोकसन्तप्त करके उनके गरम गरम आँसुओं से उस सारी सामग्री को दूषित कर दिया। कैकेयी करालकोपा चण्डी का साक्षात् अवतार थी। परन्त थी वह राजा की बड़ी लाड़ली। इस कारण राजा ने समझा बुझाकर