पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२५८

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रघुवंश।

से बताया। वे बोले:—"महाराज, जब उसके पास उसका त्रिशूल न हो तभी उस पर आक्रमण करना। क्योंकि, जब तक उसके हाथ में त्रिशूल है तब तक कोई उसे नहीं जीत सकता"।

रामचन्द्रजी ने मुनियों की रक्षा का काम शत्रुघ्न को सौंपा। शत्रुघ्न का अर्थ है—शत्रुओं का संहार करने वाला। अतएव शत्रुघ्न का नाम यथार्थ करनेही के लिए मानों रामचन्द्रजी ने उन्हें लवणासुर को मारने की आज्ञा दी। शत्रुओं को सन्ताप पहुँचाने में रघुवंशी एक से एक बढ़ कर होते हैं। जिस तरह अपवादात्मक नियम सर्व-साधारण नियम को धर दबाता है उसी तरह रघुवंशियों में, कोई भी क्यों न हो, वह अपने शत्रु का प्रताप शमन करने की शक्ति रखता है।

रामचन्द्र जी ने शत्रुघ्न को आशीष देकर बिदा किया। वे झट रथ पर सवार हुए और सुगन्धित फूल खिले हुए वनों का दृश्य देखते हुए चले। शत्रुघ्न वीर भी बड़े थे और निडर भी बड़े थे। उनके लिए सेना की कुछ भी आवश्यकता न थी। तथापि रामचन्द्रजी ने उनकी सहायता के लिए थोड़ी सी सेना साथ कर ही दी। वह शत्रुघ्नके पीछे पीछे चली। परन्तु उनकी प्रयोजन-सिद्धि के लिए वह सेना बिलकुलही अनावश्यक सिद्ध हुई। 'इ' धातु स्वयं ही अध्ययनार्थक है। उसके पीछे लगे हुए 'अधि' उपसर्ग से उसका जितना प्रयोजन सिद्ध होता है उतनाहीं पीछे चलने वाली सेना से शत्रुघ्न का प्रयोजन सिद्ध हुआ। 'इ' के लिए 'अधि' की तरह शत्रुघ्न के लिए रामचन्द्रजी की भेजी हुई सेना व्यर्थ हुई। सूर्य्य के रथ के आगे आगे चलने वाले बालखिल्य मुनियों की तरह, यमुना-तट-वासी ऋषि भी, शत्रुघ्न के रथ के आगे आगे, रास्ता बतलाते हुए, चले। शत्रुघ्न बड़े ही तेजस्वी थे। देदीप्यमान जनों में वे बढ़ कर थे। जिस समय तपस्वियों के पीछे वे, और, उनके पीछे सेना चली, उस समय उनकी तेजस्विता और शोभा और भी बढ़ गई।

रास्ते में वाल्मीकि का तपोवन पड़ा। उसके पास पहुँचने पर, आश्रम के मृग, शत्रुघ्न के रथ की ध्वनि सुन कर, सिर ऊपर को उठाये हुए बड़े चाव से उन्हें देखने लगे। शत्रुघ्न ने एक रात वहीं, उस आश्रम मे, बिताई। उनके रथ के घोड़े बहुत थक गये थे। इससे उन्होंने वहीं ठहर जाना मुनासिब समझा। वाल्मीकि ने कुमार शत्रुघ्न का अच्छा सत्कार किया। तपस्या के प्रभाव से उन्होंने उत्तमोत्तम पदार्थ प्रस्तुत कर दिये और शत्रुघ्न को बड़ेही आराम से रक्खा। उसी रात को शत्रुघ्न की गर्भवती भाभी के—पृथ्वी के कोश और दण्ड के समान—दो सर्वसम्पन्न पुत्र हुए। बड़े