पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२६

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भूमिका

की सम्भावनाही है। जब तक जगत् के साक्षर जन सच्ची और सरस, स्वाभाविक और सुन्दर कविता का आदर करते रहेंगे तब तक कालिदास के विषय में उनकी पूज्य बुद्धि भी अक्षुण्ण रहेगी। प्रमोदजनक और शिक्षादायक वस्तुओं को जब तक मनुष्य-समुदाय अपने लिए हित- कर समझेगा तब तक कालिदास की कीर्ति, यदि उत्तरोत्तर बढ़े भी नहीं, तो कम भी न होगी।

कालिदास को संस्कृत-कवितारूपी आकाश का पूर्ण चन्द्र कहना चाहिए। उनके किस किस गुण की प्रशंसा की जाय । संस्कृत-भाषा पर उनका अधिकार असामान्य था। उन्होंने अपनी कविता में चुन चुन कर सरल, पर सरस और प्रसङ्गानुरूप शब्दों की ऐसी योजना की है जैसी कि आज तक और किसी कवि की कविता में नहीं पाई जाती। उनकी प्रतिभा विश्वतोमुखी थी। उनकी कल्पनाओं की पहुँच पृथ्वी, आकाश, पाताल सब कहीं थी। उनके वर्णन का ढंग बड़ा ही सुन्दर और हृदयस्पर्शी है । व्याकरण, ज्योतिष, अलङ्कारशास्त्र, नीतिशास्त्र, वेदान्त, सांख्य, पदार्थ-विज्ञान, इतिहास, पुराण आदि जिस शास्त्र और जिस विषय में उन्हें जो बात अपने मतलब की देख पड़ी है उसी को वहाँ से खींच कर उसके उपयोग द्वारा उन्होंने ने अपने मनोभावों को मनोहर से मनोहर रूप देकर व्यक्त किया है।

श्रीयुत अरविन्द घोष ने कालिदास पर एक निबन्ध लिखा है। उसमें उन्होंने कालिदास की कविता के विषय में जो राय दी है उसका आशय नीचे दिया जाता है :-

"कालिदास की तर्कना-शक्ति बहुत ही अच्छी थी। शृङ्गार और करुण रस के वर्णन में वे सिद्धहस्त थे । कालिदास में प्रधान गुण यह था कि वे प्रत्येक काव्योपयोगी सामग्री को-काव्य के प्रत्येक अंश को-बड़े ही कौशल से सुन्दर बना देते थे। अपने वर्णनीय विषय की मूर्ति पाठकों के सामने खड़ी कर देने की जैसी शक्ति कालिदास में थी वैसी और किसी कवि में नहीं पाई जाती।। "बड़े बड़े कवि जब बहुत उत्तेजित होकर किसी बात का वर्णन करने लगते हैं तभी उनमें उस बात को प्रत्यक्षवत् दिखा देने की शक्ति आती है। पर कालिदास में यह विलक्षण शक्ति सब समय वर्तमान रहती थी। इसी शक्ति के साथ अपनी सौन्दर्य कल्पना की सर्वश्रेष्ठ शक्ति को मिला कर वे काव्यचित्र बनाया करते थे। वे जैसे उत्तम विषय की कल्पना कर सकते थे वैसे ही उसे खूबसूरती के साथ सम्पन्न भी कर सकते थे। भाषा और शब्दों के सौन्दर्य तथा उनकी ध्वनि और अर्थ आदि का भी वे बड़ा ख़याल रखते थे। उन्होंने संस्कृत-भाषा के भाण्डार से बहुत ही ललित छन्दों