सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२७
सोलहवाँ सर्ग।

क्योंकि उन्हें सिवार बहुत पसन्द है। अतएव इन गहनों को सिवार ही समझ कर मछलियाँ इन्हें पकड़ने दौड़ती हैं और धोखा खाती हैं। उमङ्ग में आकर ये स्त्रियाँ अपने हाथों से जल को कैसा उछाल रही हैं। ज़ोर से जल उछाले जाने के कारण, मोती के समान बड़े बड़े जल-कण की वर्षा इनके वक्षःस्थल पर हो रही है। इससे, यद्यपि इनके हार टूट कर गिरनेहीं चाहते हैं तथापि इन्हें इस बात की कुछ ख़बर ही नहीं। जल-कणों और हार के मोतियों में तुल्यता होने के कारण स्त्रियों को इसका ज्ञानही नहीं कि उनके हार टूट रहे हैं या साबित हैं। गहरी नाभि की शोभा की उपमा जल की भौंरों की शोभा से दी जाती है, भौंहों की तरङ्गों से दी जाती है और वक्षोजों की चकवा-चकवी के जोड़े से दी जाती है। रूप और अवयवों की उपमा का यह सारा सामान, इस समय, इन विलासवती जलविहारिणी रमणियों के पासही मौजूद है। इनके अवयव आदि के उपमान ढूँढ़ने के लिए दूर जाने की ज़रूरत नहीं। वारिरूपी मृदङ्ग बजा कर ये गाती भी जाती हैं! उसे सुन कर, पूँछे ऊपर उठाये हुप तीरवर्त्ती मोर, अपनी मधुर कूक से, इनके गीत-वाद्य की प्रशंसा सी कर रहे हैं। आहा! जलरूपी मृदङ्ग की ध्वनि जो ये कर रही हैं वह कानों का बहुतही प्यारी मालूम होती है। भीगने के कारण इनकी बारीक साड़ी इनके गोरे गोरे बदन पर चिपक सी गई है। उसी के ऊपर, इनकी कमर में, करधनी पड़ी है। उसकी घुँघुरुओं के कुन्दों के भीतर पानी भर गया है। अतएव घुँघुरू चन्द्रमा की चाँदनी से ढके हुए तारों की तरह—मौन सा धारण किये हुए अपूर्व शोभा पा रहे हैं। पानी उछालने में ये एक दूसरी की स्पर्धा कर रही हैं। कोई भी नहीं चाहती कि मैं इस काम में किसी से हार जाऊँ। इस कारण, घमण्ड में आकर, ये अपने हाथ से पानी की धारा उछाल कर बड़े ज़ोर से अपनी सखियों के मुँह पर मारती हैं। इस मार से इनके खुले हुए बाल भीग जाते हैं। अतएव कुमकुम लगे हुए बालों की सीधी नोकों से ये तरुणी नारियाँ पानी की लाल लाल बूँदों की वर्षा कर रही हैं। इनके बाल खुल गये हैं; इनके शरीर पर काढ़े गये केसर-कस्तूरी आदि के बेल बूटे धुल गये हैं; और, इनके मातियों के कर्णफूल खुल कर नीचे लटक गये हैं—जल-क्रीड़ा के कारण यद्यपि इनके मुख पर व्याकलता के ये चिह्न दिखाई दे रहे हैं, तथापि इनका मुख फिर भी सुन्दरही मालूम होता है"।

यहाँ तक अपने रनिवास की रमणियों के वारि-विहार का वर्णन कर चुकने पर, कुश का भी मन सरयू में स्नान करने के लिए चञ्चल हो उठा। अतएव, वह विमान के समान बनी हुई नौका से उतर पड़ा और छाती पर

३४