पृष्ठ:रघुवंश (अनुवाद).djvu/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३८
रघुवंश।

को भी न छोड़ा। उसने नगर नगर और गाँव गाँव में अपने गुप्तचर-रूपी किरण छोड़ दिये। फल यह हुआ कि जैसे निरभ्र सूर्य्य से कोई बात छिपी नहीं रहती वैसे ही उसके राज्य में उससे भी कोई बात छिपी न रही। जहाँ कहीं जो कुछ हुआ सब उसको ज्ञात हो गया।

राजनीति और धर्म्मशास्त्र में जिस घड़ी जो काम करने की आज्ञा राजाओं को है वह काम उसने उसी घड़ी किया। चाहे रात हो चाहे दिन, जिस समय का जो काम था उसी समय उसने कर डाला। इस नियम में कभी उससे त्रुटि न होने पाई।

मन्त्रियों के साथ यद्यपि वह प्रति दिन मन्त्रणा करता था—यद्यपि कोई दिन ऐसा न जाता था कि वह अपने मन्त्रियों के साथ गुप्त विचार न करता हो—तथापि, गुप्त मन्त्रणाओं के सम्बन्ध में प्रति दिन परस्पर विचार और वाद-विवाद होने पर भी, उनका लवलेश भी बाहर के लोगों को न मालूम होता था। बात यह थी कि मन्त्रणाओं के बाहर निकलने के द्वार उसने बड़ी ही दृढ़ता से बन्द कर दिये थे। उसने प्रबन्धही ऐसा कर दिया था कि उसकी गुप्त बाते मन्त्रियों के सिवा और किसी को मालूम न हों।

अनेकों जासूस जो उसने रख छाड़े थे उनमें यह विशेषता थी कि उन्हें एक दूसरे का कुछ भी हाल न मालूम था। उनका काम शत्रुओं की ख़बर रखनाहीं न था, मित्रों की भी ख़बर रखने की उन्हें आज्ञा थी। अतिथि को उनसे शत्रुओं और मित्रों, दोनों, का क्षण क्षण का हाल मालूम हो जाता था। सोने के समय अतिथि आनन्द को सोता ज़रूर था; परन्तु उस समय भी वह अपने जासूसों की बदौलत जागा हुआ ही सा रहता था। क्योंकि, उसके सोते समय जो घटनायें होती थीं उनकी भी रिपोर्ट उस तक पहुँच जाती थी।

शत्रुओं पर आक्रमण करने की उसमें यथेष्ट शक्ति थी। वह किसी बात में निर्बल न था! परन्तु, फिर भी, उसने बड़े बड़े दृढ़ किले बनवाये थे। उन्हीं में वह रहता था। इसका कारण भय न था। हाथियों के मस्तक विदीर्ण करनेवाला सिंह क्या भय से थोड़ेही गिरि-गुहा के भीतर सोता है? वह तो उसका स्वभावही है। इसी तरह क़िले बनवाना और उनमें रहना अतिथि का स्वभावही था। डर से वह ऐसा न करता था।

जितने काम वह करता था ख़ूब सोच समझ कर करता था। काम भी वह वही करता था जिनसे उसे विश्वास हो जाता था कि सुख, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होगी। फिर, किसी काम का आरम्भ करके वह उसे देखता रहता था। इससे उसमें कोई विघ्न न आता था। उसके सारे